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जीव अधिकार
१७
नित्यानन्दैकस्वरूपनिजकारणपरमात्म- भावनोत्पन्नकार्यपरमात्मा स एव भगवान् अर्हन् परमेश्वरः । अस्य भगवतः परमेश्वरस्य विपरीतगुणात्मकाः सर्वे देवाभिमानदग्धा अपि संसारिण इत्यर्थः।
तथा चोक्तं श्रीकुन्दकुन्दाचार्यदेवै:
"तेजो दिट्ठी णाणं इड्डी सोक्खं तहेव ईसरियं।
तिहुवणपहाणदइयं माहप्पं जस्स सो अरिहो।।'' 'नित्यानंद-एकस्वरूप निज कारणपरमात्माकी भावनासे उत्पन्न कार्यपरमात्मा, वही भगवान अर्हत् परमेश्वर हैं। इन भगवान परमेश्वरके गुणोग्से विपरीत गुणोंवाले समस्त ( देवाभास), भले देवत्वके अभिमानसे दग्ध हों तथापि, संसारी हैं।---ऐसा ( इस गाथाका) अर्थ है।
इसीप्रकार (भगवान) श्री कुंदकुंदाचार्यदेवने (प्रवचनसारकी गाथामें) कहा है कि:
___ “[गाथार्थ:--] तेज (भामंडल), दर्शन ( केवलदर्शन), ज्ञान (केवलज्ञान), ऋद्धि ( समवसरणादि विभूति), सौख्य (अनंत अतीन्द्रिय सुख), (इंद्रादिक भी दासरूपसे वर्ते ऐसा) ऐश्वर्य, और (तीन लोकके अधिपतियोंके वल्लभ होनेरूप) त्रिभुवनप्रधानवल्लभपना---ऐसा जिनका माहात्म्य है, वे अर्हत हैं।” १। नित्यानंद-एकस्वरूप = नित्य आनंद ही जिसका एक स्वरूप है ऐसा। [ कारणपरमात्मा त्रिकाल आवरणरहित है और नित्य आनंद ही उसका एक स्वरूप है। प्रत्येक आत्मा शक्ति-अपेक्षासे निरावरण एवं आनंदमय ही है इसलिये प्रत्येक आत्मा कारणपरमात्मा है; जो कारणपरमात्माको भाता है-उसी का आश्रय करता है, वह व्यक्ति-अपेक्षासे निरावरण और आनंदमय होता है अर्थात् कार्यपरमात्मा होता है। शक्तिमेंसे व्यक्ति होती है, इसलिये शक्ति कारण है और व्यक्ति कार्य है। ऐसा होनेसे शक्तिरूप परमात्माको कारणपरमात्मा कहा जाता है और व्यक्त परमात्माको कार्यपरमात्मा कहा जाता है।
२। देखो, श्री परमश्रुतप्रभाकमंडल द्वारा प्रकाशित 'प्रवचनसार पृष्ठ ८८।
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