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व्यवहारचारित्र अधिकार
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( मालिनी) जितरतिपतिचापः सर्वविद्याप्रदीपः परिणतसुखरूपः पापकीनाशरूपः। हतभवपरितापः श्रीपदानम्रभूपः स जयति जितकोपः प्रहविद्वत्कलापः।। ९८ ।।
( मालिनी) जयति विदितमोक्षः पद्मपत्रायताक्षः प्रजितदुरितकक्षः प्रास्तकंदर्पपक्षः। पदयुगनतयक्षः तत्त्वविज्ञानदक्ष: कृतबुधजनशिक्षः प्रोक्तनिर्वाणदीक्षः।। ९९ ।।
पुण्यरूपी कमलको (विकसित करने वाले) भानु हैं, जो सर्व गुणोंके समाज (-समुदाय ) हैं, जो सर्व कल्पित (-चिंतित)- देनेवाले कल्पवृक्ष हैं, जिन्होंने दुष्ट कर्मके बीजको नष्ट किया है, जिनके चरणमें सुरेंद्र नमते हैं और जिन्होंने संसाररूपी वृक्षका त्याग किया है, वे जिनराज (श्री पद्मप्रभ भगवान) जयवंत हैं। ९७।
[ श्लोकार्थ:-] कामदेवके बाणको जिन्होंने जीत लिया है, सर्व विद्याओंके जो प्रदीप (-प्रकाशक) हैं, जिनका स्वरूप सुखरूप परिणमित हुआ है, पापको ( मार-डालनेके लिये) जो यमरूप हैं, भवके परितापका जिन्होंने नाश किया है, भूपति जिनके श्रीपदमें (महिमायुक्त पुनीत चरणोंमें) नमते हैं, क्रोधको जिन्होंने जीता है और विद्वानोंका समुदाय जिनके आगे नत हो जाता-झुक जाता है, वे (श्री पद्मप्रभनाथ) जयवंत हैं। ९८ ।
[श्लोकार्थ:-] प्रसिद्ध जिनका मोक्ष है, पद्मपत्र (-कमलके पत्ते ) जैसे दीर्घ जिनके नेत्र हैं, “पापकक्षाको जिन्होंने जीत लिया है, कामदेवके पक्षका जिन्होंने नाश किया है. यक्ष जिनके चरणयगलमें नमते हैं, तत्त्वविज्ञानमें जो दक्ष (चतर) हैं जिन्होंने शिक्षा (सीख) दी है और निर्वाणदीक्षा का जिन्होंने उच्चारण किया है, वे (श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्र) जयवंत हैं। ९९ ।
धजनोंको
* कक्षा = भूमिका; श्रेणी; स्थिति।
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