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સર્વવિશુદ્ધિ દ્વાર
(१०)
प्रतिau (aasu) इति श्री नाटक ग्रंथमैं , कहौ मोख अधिकार।
अब बरनौं संछेपसौं, सर्व विसुद्धी द्वार।।१।। અર્થ - નાટક સમયસાર ગ્રંથના મોક્ષ અધિકારની પૂર્ણતા કરી. હવે સર્વવિશુદ્ધિ દ્વાર સંક્ષેપમાં કહીએ છીએ. ૧.
સર્વ ઉપાધિ રહિત શુદ્ધ આત્માનું સ્વરૂપ (સવૈયા એકત્રીસા) कर्मनिकौ करता है भोगनिकौ भोगता है,
जाकी प्रभुतामैं ऐसौ कथन अहित है। जामैं एक इंद्री आदि पंचधा कथन नाहि,
सदा निरदोष बंध मोखसौं रहित है।। ग्यानकौ समूह ग्यानगम्य है सुभाव जाकौ,
लोक व्यापी लोकातीत लोकमै महित है। सुद्ध बंस सुद्ध चेतनाकै रस अंस भरयौ,
ऐसौ हंस परम पुनीतता सहित है।।२।। शार्थ:- प्रभुत = सामथ्र्य. माहित = ४२ ३२ ना२. पंया = ५in 1२ न.. alsतात = थी ५२. महित = ५४नीय. ५२. पुनीत = अत्यंत पवित्र.
नीत्वा सम्यक् प्रलयमखिलान् कर्तृभोक्त्रादिभावान्
दूरीभूतः प्रतिपदमयं बन्धमोक्षप्रक्लुप्तेः। शुद्धः शुद्धः स्वरसविसरापूर्णपुण्याचलार्चि
ष्टंकोत्कीर्णप्रकटमहिमा स्फूर्जति ज्ञानपुंजः।।१।।
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