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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates तीसरा अधिकार ] [५३ होता हो तो अनुमोदन करता है। उसका बुरा होनेसे अपना कुछ भी प्रयोजन सिद्ध न हो तथापि उसका बुरा करता है। तथा क्रोध होनेपर कोई पूज्य या इष्टजन भी बीचमें आयें तो उन्हें भी बुरा कहता है, मारने लग जाता है, कुछ विचार नहीं रहता। तथा अन्यका बुरा न हो तो अपने अंतरंगमें आप ही बहुत संतापवान होता है और अपने ही अंगोंका घात करता है तथा विषादिसे मर जाता है। - ऐसी अवस्था क्रोध होनेसे होती है। __ तथा जब इसके मान कषाय उत्पन्न होती है तब औरोंको नीचा व अपनेको ऊँचा दिखाने की इच्छा होती है और उसके अर्थ अनेक उपाय सोचता है। अन्यकी निंदा करता है, अपनी प्रशंसा करता है व अनेकप्रकारसे औरोंकी महिमा मिटाता है, अपनी महिमा करता है। महाकष्टसे जो धनादिकका संग्रह किया उसे विवाहादि कार्यों में खर्च करता है तथा कर्ज लेकर भी खर्चता है। मरनेके बाद हमारा यश रहेगा ऐसा विचारकर अपना मरण करके भी अपनी महिमा बढ़ाता है। यदि कोई अपना सन्मानादिक न करे तो उसे भयादिक दिखाकर दुःख उत्पन्न करके अपना सन्मान कराता है। तथा मान होने पर कोई पूज्य-बड़े हों उनका भी सन्मान नहीं करता, कुछ विचार नहीं रहता। यदि अन्य नीचा और स्वयं ऊँचा दिखाई न दे, तो अपने अंतरंगमें आप बहुत संतापवान होता है और अपने अंगोंका घात करता है तथा विष आदिसे मर जाता है।- ऐसी अवस्था मान होने पर होती है। तथा जब इसके माया कषाय उत्पन्न होती है तब छल द्वारा कार्य सिद्ध करनेकी इच्छा होती है। उसके अर्थ अनेक उपाय सोचता है, नानाप्रकार कपटके वचन कहता है, शरीरकी कपटरूप अवस्था करता है, बाह्यवस्तुओंको अन्यथा बतलाता है, तथा जिनमें अपना मरण जाने ऐसे भी छल करता है। कपट प्रगट होनेपर स्वयंका बहुत बुरा हो, मरणादिक हो उनको भी नहीं गिनता। तथा माया होनेपर किसी पूज्य व इष्टका भी सम्बन्ध बने तो उनसे भी छल करता है, कुछ विचार नहीं रहता। यदि छल द्वारा कार्यसिद्धि न हो तो स्वयं बहुत संतापवान होता है, अपने अंगों का घात करता है तथा विष आदिसे मर जाता है। - ऐसी अवस्था माया होनेपर होती है। तथा जब इसके लोभ कषाय उत्पन्न हो तब इष्ट पदार्थके लाभकी इच्छा होनेसे उसके अर्थ अनेक उपाय सोचता है। उसके साधनरूप वचन बोलता है, शरीरकी अनेक चेष्टा करता है, बहुत कष्ट सहता है, सेवा करता है, विदेशगमन करता है। जिसमें मरण होना जाने वह कार्य भी करता है। जिनमें बहुत दुःख उत्पन्न हो ऐसे प्रारम्भ करता है। तथा लोभ होनेपर पूज्य व इष्टका भी कार्य हो वहाँ भी अपना प्रयोजन साधता है, कुछ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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