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[मोक्षमार्गप्रकाशक
है कि इनसे मेरा भला होगा; परन्तु वे ऐसा उपाय करते हैं जिससे यह अचेत हो जाय। वस्तुस्वरूपका विचार करनेको उद्यमी हुआ था सो विपरीत विचारमें दृढ़ हो जाता है और तब विषय-कषायकी वासना बढ़नेसे अधिक दुःखी होता है।
तथा कदाचित् सुदेव-सुगुरु-सुशास्त्रका भी निमित्त बन जाये तो वहाँ उनके निश्चय उपदेशका तो श्रद्धान नहीं करता, व्यवहारश्रद्धानसे अतत्त्वश्रद्धानी ही रहता है। वहाँ मंदकषाय हो तथा विषयकी इच्छा घटे तो थोड़ा दुःखी होता है, परन्तु फिर जैसेका तैसा हो जाता है; इसलिये यह संसारी जो उपाय करता है वे भी झूठे ही होते हैं।
तथा इस संसारीके एक यह उपाय है कि स्वयंको जैसा श्रद्धान है उसी प्रकार पदार्थोंको परिणमित करना चाहता है। यदि वे परिणमित हों तो इसका सच्चा श्रद्धान हो जाये। परन्तु अनादिनिधन वस्तुएँ भिन्न-भिन्न अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती हैं, कोई किसीके आधीन नहीं हैं, कोई किसीके परिणमित करानेसे परिणमित नहीं होतीं। उन्हें परिणमित कराना चाहे वह कोई उपाय नहीं है, वह तो मिथ्यादर्शन ही है।
तो सच्चा उपाय क्या है ? जैसा पदार्थों का स्वरूप है वैसा श्रद्धान हो जाये तो सर्व दुःख दूर हो जायें। जिस प्रकार कोई मोहित होकर मुर्देको जीवित माने या जिलाना चाहे तो आप ही दुःखी होता है। तथा उसे मुर्दा मानना और यह जिलानेसे जियेगा नहीं ऐसा मानना सो ही उस दुःखके दूर होने का उपाय है। उसी प्रकार मिथ्यादृष्टि होकर पदार्थोंको अन्यथा माने, अन्यथा परिणमित करना चाहे तो आप ही दुःखी होता है। तथा उन्हें यथार्थ मानना और यह परिणमित करानेसे अन्यथा परिणमित नहीं होगें ऐसा मानना सो ही उस दुःखके दूर होने का उपाय है। भ्रमजनित दुःखका उपाय भ्रम दूर करना ही है। सो भ्रम दूर होने से सम्यश्रद्धान होता है, वही सत्य उपाय जानना।
चारित्रमोहसे दु:ख और उससे निवृत्ति
चारित्रमोहके उदयसे क्रोधादिकषायरूप तथा हास्यादि नोकषायरूप जीवके भाव होते हैं, तब यह जीव क्लेशवान होकर दुःखी होता हुआ विह्वल होकर नानाप्रकारके कुकार्यों में प्रवर्तता है। सो ही दिखाते हैं :
जब इसके क्रोधकषाय उत्पन्न होती है तब दूसरेका बुरा करनेकी इच्छा होती है और उसके अर्थ अनेक उपाय विचारता है, मर्मच्छेदी गालीप्रदानादिरूप वचन बोलता है। अपने अंगोंसे तथा शस्त्र-पाषाणादिकसे घात करता है। अनेक कष्ट सहनकर तथा धनादि खर्च करके व मरणादि द्वारा अपना भी बुरा करके अन्यका बुरा करनेका उद्यम करता है अथवा औरोंसे बुरा होना जाने तो औरोंसे बुरा कराता है। स्वयं ही उसका बुरा
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