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तीसरा अधिकार
संसारदु:ख तथा मोक्षसुखका निरूपण
दोहा – सो निजभाव सदा सुखद , अपनौं करौ प्रकाश ।
जो बाहुविधि भवदुखनिकौ, करिहै सत्ता नाश ।।
अथ, इस संसार-अवस्थामें नानाप्रकारके दुःख हैं उनका वर्णन करते हैं । क्योंकि यदि संसारमें भी सुख हो तो संसार से मुक्त होनेका उपाय किसलिये करें। इस संसारमें अनेक दुःख हैं, इसलिये संसारसे मुक्त होनेका उपाय करते हैं।
जैसे – वैद्य रोगका निदान और उसकी अवस्थाका वर्णन करके, रोगीको रोगका निश्चय कराकर, फिर उसका इलाज करनेकी रुचि कराता है। उसी प्रकार यहाँ संसारका निदान तथा उसकी अवस्थाका वर्णन करके, संसारीको संसार-रोगका निश्चय कराके, अब उसका उपाय करनेकी रुचि कराते हैं।
जैसे - रोगी रोगसे दुःखी हो रहा है परन्तु उसका मूल कारण नहीं जानता, सच्चा उपाय नहीं जानता और दुःख सहा नहीं जाता; तब जो उसे भासित हो वही उपाय करता है इसलिये दुःख दूर नहीं होता, तब तड़प-तड़पकर परवश हुआ उन दुःखों को सहता है। उसे वैद्य दुःखका मूलकारण बतलाये, दुःखका स्वरूप बतलाये, उन उपायोंको झूठा बतलाये, तब सच्चे उपाय करनेकी रुचि होती है। उसी प्रकार संसारी संसार से दुःखी होरहा है परन्तु उसका मूलकारण नहीं जानता, तथा सच्चे उपाय नहीं जानता और दुःख सहा भी नहीं जाता; तब अपने को भासित हो वही उपाय करता है इसलिये दुःख दूर नहीं होता, तब तड़प-तड़पकर परवश हुआ उन दुःखों को सहता है। उसे यहाँ दुःखका मूलकारण बतलाते हैं, दुःखका स्वरूप बतलाते हैं, और उन उपायोंको झूठे बतलायें तो सच्चे उपाय करनेकी रूचि हो। इसलिये यह वर्णन यहाँ करते हैं।
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