________________
Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
२६]
[मोक्षमार्गप्रकाशक
नवीन बन्ध विचार
वहाँ नवीन बंध कैसे होता है सो कहते हैं - जैसे सूर्यका प्रकाश है सो मेघपटलसे जितना व्यक्त नहीं है उतनेका तो उस कालमें अभाव है, तथा उस मेघपटलके मन्दपनेसे जितना प्रकाश प्रगट है वह उस सूर्यके स्वभावका अंश है - मेघपटलजनित नहीं है। उसी प्रकार जीवका ज्ञान-दर्शन-वीर्य स्वभाव है; वह ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तरायके निमित्त से जितना व्यक्त नहीं है उतने का तो उस कालमें अभाव है। तथा उन कर्मोंके क्षयोपशमसे जितने ज्ञान, दर्शन, वीर्य प्रगट हैं वह उस जीव के स्वभाव का अंश ही है; और कर्म जनित औपाधिकभाव नहीं है। सो ऐसे स्वभाव के अंश का अनादिसे लेकर कभी अभाव नहीं होता । इस ही के द्वारा जीवके जीवत्वपने का निश्चय किया जाता है कि यह देखनेवाली जाननेवाली शक्ति को धरती हुई वस्तु है वही आत्मा है।
तथा इस स्वभाव से नवीन कर्मका बंध नहीं होता; क्योंकि निजस्वभाव ही बन्धका कारण हो तो बन्धका छूटना कैसे हो ? तथा उन कर्मोंके उदय से जितने ज्ञान, दर्शन, वीर्य अभावरूप हैं उनसे भी बन्ध नहीं है; क्योंकि स्वयं ही का अभाव होने पर अन्य को कारण कैसे हो? इसलिये ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तरायके निमित्त से उत्पन्न भाव नवीन कर्मबन्ध के कारण नहीं है।
तथा मोहनीय कर्मके द्वारा जीवको अयथार्थ-श्रद्धानरूप तो मिथ्यात्वभाव होता है तथा क्रोध, मान , माया, लोभादिक कषाय होते हैं। वे यद्यपि जीवके अस्तित्वमय हैं, जीवसे भिन्न नहीं हैं, जीव ही उनका करता है, जीवके परिणमनरूप ही वे कार्य हैं; तथापि उनका होना मोहकर्मके निमित्त से ही है, कर्मनिमित्त दूर होने पर उनका अभाव ही होता है, इसलिये वे जीवके निजस्वभाव नहीं, औपाधिक भाव हैं। तथा उन भावों द्वारा नवीन बन्ध होता है; इसलिये मोहके उदयसे उत्पन्न भाव बन्ध के कारण हैं।
तथा अघातिकर्मोंके उदयसे बाह्य सामग्री मिलती है, उसमें शरीरादिक तो जीवके प्रदेशोंसे एकक्षेत्रावगाही होकर एक बंधानरूप होते हैं और धन, कुटुम्बादिक आत्मासे भिन्नरूप हैं इसलिये वे सब बंधके कारण नहीं हैं; क्योंकि परद्रव्य बंधका कारण नहीं होता। उनमें आत्माको ममत्वादिरूप मिथ्यात्वादिभाव होते हैं वही बंधका कारण जानना।
योग और उससे होनेवाले प्रकृतिबन्ध , प्रदेशबन्ध
तथा इतना जानना कि नामकर्मके उदयसे शरीर, वचन और मन उत्पन्न होते हैं; उनकी चेष्टा के निमित्तसे आत्माके प्रदेशोंका चंचलपना होता है, उससे आत्मा को पुद्गल-वर्गणासे
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com