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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नौवाँ अधिकार] [३३९ समाधान :- जैसे मनुष्यशरीरके हस्त-पादादिक अंग कहे जाते हैं; वहाँ कोई मनुष्य ऐसा भी हो जिसके हस्त-पादादिमें कोई अंग न हो; वहाँ उसके मनुष्य शरीर तो कहा जाता है, परन्तु उन अंगों बिना वह शोभायमान सकल कार्यकारी नहीं होता। उसी प्रकार सम्यक्त्व के निःशंकितादि अंग कहे जाते हैं; वहाँ कोई सम्यक्त्वी ऐसा भी हो जिसके निःशंकितत्वादिमें कोई अंग न हो; वहाँ उसके सम्यक्त्व तो कहा जाता है, परन्तु उन अंगों के बिना वह निर्मल सकल कार्यकारी नहीं होता। तथा जिसप्रकार बन्दरके भी हस्तपादादि अंग होते हैं, परन्तु जैसे मनुष्यके होते हैं वैसे नहीं होते; उसी प्रकार मिथ्यादृष्टियोंके भी व्यवहाररूप निःशंकितादिक अंग होते हैं, परन्तु जैसे निश्चयकी सापेक्षता सहित सम्यक्त्वी के होते हैं वैसे नहीं होते। सम्यग्दर्शनके पच्चीस दोष तथा सम्यक्त्वमें पच्चीस मल कहे हैं :- आठ शंकादिक, आठ मद, तीन मूढ़ता, षट् अनायतन, सो यह सम्यक्त्वीके नहीं होते। कदाचित् किसी को कोई मल लगे, परन्तु सम्यक्त्वका सर्वथा नाश नहीं होता, वहाँ सम्यक्त्व मलिन ही होता है - ऐसा जानना। बहु Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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