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नौवाँ अधिकार]
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तब मोक्षमार्गमें कैसे प्रवर्ते? इसलिये इन दो जातियोंका श्रद्धान न होने पर मोक्ष नहीं होता। इस प्रकार यह दो सामान्य तत्त्व तो अवश्य श्रद्धान करने योग्य कहे हैं।
तथा आस्रवादि पाँच कहे, वे जीव-पुद्गल की पर्याय हैं; इसलिये यह विशेषरूप तत्त्व हैं; सो इन पाँच पर्यायोंको जानने से मोक्षका उपाय करने का श्रद्धान होता है।
वहाँ मोक्षको पहिचानेतो उसे हित मान कर उसका उपयोग करे; इसलिये मोक्षका श्रद्धान करना।
तथा मोक्षका उपाय संवर-निर्जरा है; सो इनको पहिचानेतो जैसे संवर-निर्जराहो वैसे प्रवर्ते; इसलिये संवर-निर्जराका श्रद्धान करना।
तथा संवर-निर्जरा तो अभावलक्षण सहित है; इसलिये जिनका अभाव करना है उनको पहिचानना चाहिये। जैसे - क्रोधका अभाव होने पर क्षमा होती है; सो क्रोधको पहिचाने तो उसका अभाव करके क्षमारूप प्रवर्तन करे। उसी प्रकार आस्रवका अभाव होने पर संवर होता है और बन्धका एकदेश अभाव होने पर निर्जरा होती है; सो आस्रव बन्धको पहिचाने तो उनका नाश करके संवर-निर्जरारूप प्रवर्तन करे; इसलिये आस्रव-बन्धका श्रद्धान करना।
इसप्रकार इन पाँच पर्यायोंका श्रद्धान होनेपर ही मोक्षमार्ग होता है, इनको न पहिचाने तो मोक्षकी पहिचान बिना उसका उपाय किसलिये करे ? संवर-निर्जराकी पहिचान बिना उनमें कैसे प्रवर्तन करे? आस्रव-बन्धकी पहिचान बिना उनका नाश कैसे करे ? - इसप्रकार इन पाँच पर्यायोंका श्रद्धान न होने पर मोक्षमार्ग नहीं होता।
इसप्रकार यद्यपि तत्त्वार्थ अनन्त हैं, उनका सामान्य विशेषसे अनेक प्रकार प्ररूपण हो; परन्तु यहाँ एक मोक्षका प्रयोजन है; इसलिये दो तो जाति अपेक्षा सामान्यतत्त्व और पाँच पर्यायरूप विशेषतत्त्व मिला कर सात ही तत्त्व कहे।
इनके यथार्थ श्रद्धानके आधीन मोक्षमार्ग है। इनके सिवा औरोंका श्रद्धान हो या न हो या अन्यथा श्रद्धान हो; किसी के आधीन मोक्षमार्ग नहीं है ऐसा जानना।
तथा कहीं पुण्य-पाप सहित नवपदार्थ कहे हैं; सो पुण्य-पाप आस्रवादिकके ही विशेष हैं. इसलिये साततत्त्वोंमें गर्भित हए। अथवा पुण्य-पापका श्रद्धान होनेपर पुण्यको मोक्षमार्ग न माने, या स्वच्छन्दी होकर पापरूप न प्रवर्ते; इसलिये मोक्षमार्ग में इनका श्रद्धान भी उपकारी जानकर दो तत्त्व विशेष के विशेष मिला कर नवपदार्थ कहे। तथा समयसारादिमें इनको नवतत्त्व भी कहा है।
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