SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ३१४] [मोक्षमार्गप्रकाशक है, और जिनके न होने पर सर्वथा कार्य सिद्धि नहीं होती। जैसे – सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्रकी एकता होनेपर तो मोक्ष होता ही होता है, और उनके न होने पर सर्वथा मोक्ष नहीं होता। - ऐसे यह कारण कहे, उनमें अतिशयपूर्वक नियमसे मोक्षका साधक जो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रका एकीभाव सो मोक्षमार्ग जानना। इन सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञानसम्यक्चारित्रमें एक भी न हो तो मोक्षमार्ग नहीं होता। वही 'सूत्रमें ' कहा है:-“ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।।"( तत्त्वार्थसूत्र १-१) इस सूत्रकी टीका में कहा है कि यहाँ “ मोक्षमार्ग:” ऐसा एकवचन कहा, उसका अर्थ यह है कि तीनों मिलने पर एक मोक्षमार्ग है, अलग-अलग तीन मार्ग नहीं हैं। यहाँ प्रश्न है कि असंयत सम्यग्दृष्टिके तो चारित्र नहीं है, उसको मोक्षमार्ग हुआ है या नहीं हुआ है ? समाधान :- मोक्षमार्ग उसके होगा, यह तो नियम हुआ; इसलिये उपचार से इसके मोक्षमार्ग हुआभी कहते हैं; परमार्थसे सम्यक्चारित्र होने पर ही मोक्षमार्ग होता है। जैसे - किसी पुरुषको किसी नगर चलने का निश्चय हुआ; इसलिये उसको व्यवहार से ऐसा भी कहते हैं कि 'यह उस नगर को चला है'; परमार्थ से मार्गमें गमन करने पर ही चलना होगा। उसी प्रकार असंयतसम्यग्दृष्टिको वीतरागभावरूप मोक्षमार्गका श्रद्धान हुआ; इसलिये उसको उपचारसे मोक्षमार्गी कहते हैं; परमार्थसे वीतरागभावरूप परिणमित होने पर ही मोक्षमार्ग होगा। तथा प्रवचनसारमें भी तीनोंकी एकाग्रता होने पर ही मोक्षमार्ग कहा है। इसलिये यह जानना कि तत्त्वश्रद्धान-ज्ञान बिना तो रागादि घटाने से मोक्षमार्ग नहीं है, और रागादि घटाये बिना तत्त्वश्रद्धान-ज्ञानसे भी मोक्षमार्ग नहीं है। तीनों मिलने पर साक्षात् मोक्षमार्ग होता है। __ अब, इनका निर्देश, लक्षणनिर्देश और परीक्षाद्वार से निरूपण करते हैं : वहाँ 'सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र मोक्ष का मार्ग है' - ऐसा नाम मात्र कथन वह तो 'निर्देश' जानना। तथा अतिव्याप्ति, अव्याप्ति, असम्भवपने से रहित हो और जिससे इनको पहचाना जाये सो ‘लक्षण' जानना; उसका जो निर्देश अर्थात् निरूपण सो ‘लक्षणनिर्देश' जानना। वहाँ जिसको पहिचानना हो उसका नाम लक्ष्य है, उसके सिवाय और का नाम अलक्ष्य है। सो लक्ष्य व अलक्ष्य दोनो में पाया जाये, ऐसा लक्षण जहाँ कहा जाये वहाँ अतिव्याप्तिपना जानना। जैसे - आत्मा का लक्षण 'अमूर्त्तत्व' कहा; सो अमूर्त्तत्वलक्षण लक्ष्य जो आत्मा है उसमें भी पाया जाता है, और अलक्ष्य जो आकाशादिक हैं उनमें भी पाया Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy