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[ मोक्षमार्गप्रकाशक
होनहार भी हुए और कर्मके उपशमादि हुए हैं तो वह ऐसा उपाय करता है। इसलिये जो पुरुषार्थसे मोक्षका उपाय करता है उसको सर्व कारण मिलते हैं और उसको अवश्य मोक्षकी प्राप्ति होती है - ऐसा निश्चय करना। तथा जो जीव पुरुषार्थसे मोक्षका उपाय नहीं करता उसके काललब्धि व होनहार भी नहीं और कर्मके उपशमादि नहीं हुए हैं तो यह उपाय नहीं करता। इसलिये जो पुरुषार्थसे मोक्षका उपाय नहीं करता उसको कोई कारण नहीं मिलते और उसको मोक्षकी प्राप्ति नहीं होती – ऐसा निश्चय करना।
तथा त कहता है - उपदेश तो सभी सनते हैं. कोई मोक्षका उपाय कर सकता है. कोई नहीं कर सकता; सो कारण क्या ?
उसका कारण यही है कि जो उपदेश सुनकर पुरुषार्थ करते हैं वे मोक्षका उपाय कर सकते हैं, और जो पुरुषार्थ नहीं करते हैं वे मोक्षका उपाय नहीं कर सकते। उपदेश तो शिक्षा मात्र है, फल जैसा पुरुषार्थ करे वैसा लगता है।
फिर प्रश्न है कि द्रव्यलिंगीमुनि मोक्षके अर्थ गृहस्थपना छोड़कर तपश्चरणादि करता है वहाँ पुरुषार्थ तो किया, कार्य सिद्ध नहीं हुआ; इसलिये पुरुषार्थ करने से तो कुछ सिद्धि नहीं है ?
समाधान :- अन्यथा पुरुषार्थसे फल चाहे तो कैसे सिद्धि हो ? तपश्चरणादि व्यवहार साधनमें अनरागी होकर प्रवर्ते उसका फल शास्त्रमें तो शभबन्ध कहा है, और मोक्ष चाहता है, कैसे होगा ? यह तो भ्रम है।
फिर प्रश्न है कि भ्रमका भी तो कारण कर्म ही है, पुरुषार्थ क्या करे ?
उत्तर :- सच्चे उपदेश से निर्णय करने पर भ्रम दूर होता है; परन्तु ऐसा पुरुषार्थ नहीं करता, इसी से भ्रम रहता है। निर्णय करने का पुरुषार्थ करे - तो भ्रमका कारण जो मोहकर्म, उसके भी उपशमादि हों तब भ्रम दूर हो जाये; क्योंकि निर्णय करते हुए परिणामोंकी विशुद्धता होती है, उससे मोह के स्थिति-अनुभाग घटते हैं।
फिर प्रश्न है कि निर्णय करनेमें उपयोग नहीं लगाता, उसका भी तो कारण कर्म
समाधान :- एकेन्द्रियादिक के विचार करने की शक्ति नहीं है, उनके तो कर्महीका कारण है। इसके तो ज्ञानावरणादिकके क्षयोपशमसे निर्णय करने की शक्ति हुई है, जहाँ उपयोग लगाये उसी का निर्णय हो सकता है। परन्तु यह अन्य निर्णय करनेमें उपयोग लगाता है, यहाँ उपयोग नहीं लगाता। सो यह तो इसीका दोष है, कर्मका तो कुछ प्रयोजन नहीं है।
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