________________
Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
२९२]
[मोक्षमार्गप्रकाशक
तथा यदि बाह्यसंयमसे कुछ सिद्धि न हो तो सर्वार्थसिद्धिवासी देव सम्यग्दृष्टि बहुत ज्ञानी हैं उनके तो चौथा गुणस्थान होता है और गृहस्थ श्रावक मनुष्यों के पंचम गुणस्थान होता है, सो क्या कारण ? तथा तीर्थंकरादिक गृहस्थ पद छोड़कर किसलिये संयम ग्रहण करें ? इसलिये यह नियम है कि बाह्य संयम-साधन बिना परिणाम निर्मल नहीं हो सकते; इसलिये बाह्य साधनका विधान जाननेके लिये चरणानुयोगका अभ्यास अवश्य करना चाहिये। द्रव्यानुयोगमें दोष-कल्पनाका निराकरण
तथा कितने ही जीव कहते हैं कि द्रव्यानुयोगमें व्रत-संयमादि व्यवहारधर्मका हीनपना प्रगट किया है। सम्यग्दृष्टिके विषय-भोगादिकको निर्जराका कारण कहा है – इत्यादि कथन सुनकर जीव स्वच्छन्द होकर पुण्य छोड़कर पापमें प्रवतेंगे, इसलिये इनका पढ़ना-सुनना योग्य नहीं है।
उससे कहते हैं – जैसा गधा मिश्री खाकर मर जाये तो मनुष्य तो मिश्री खाना नहीं छोड़ेंगे; उसीप्रकार विपरीतबुद्धि अध्यात्मग्रंथ सुनकर स्वच्छन्द हो जाये तो विवेकी तो अध्यात्मग्रन्थोंका अभ्यास नहीं छोड़ेंगे। इतना करे कि जिसे स्वच्छन्द होता जाने, उसे जिसप्रकार वह स्वच्छन्द न हो उसप्रकार उपदेश दे। तथा अध्यात्मग्रंथोंमें भी स्वच्छन्द होनेका जहाँ तहाँ निषेध करते हैं, इसलिये जो भली-भांति उनको सुने वह तो स्वच्छन्द होता नहीं; परन्तु एक बात सुनकर अपने अभिप्रायसे कोई स्वच्छन्द हो तो ग्रन्थका तो दोष है नहीं, उस जीव ही का दोष है।
तथा यदि झूठे दोषकी कल्पना करके अध्यात्मशास्त्रोंको पढ़ने-सुननेका निषेध करें तो मोक्षमार्गका मूल उपदेश तो वहाँ है; उसका निषेध करनेसे तो मोक्षमार्गका निषेध होता है। जैसे – मेघवर्षा होने पर बहुत से जीवों का कल्याण होता है और किसी को उलटा नुकसान हो, तो उसकी मुख्यता करके मेघका तो निषेध नहीं करना; उसी प्रकार सभामें अध्यात्म उपदेश होने पर बहुत से जीवोंको मोक्षमार्गकी प्राप्ति होती है, परन्तु कोई उलटा पापमें प्रवर्ते, तो उसकी मुख्यता करके अध्यात्मशास्त्रोंका तो निषेध नहीं करना।
___ तथा अध्यात्मग्रन्थोंसे कोई स्वच्छन्द हो; सो वह तो पहले भी मिथ्यादृष्टि था, अब भी मिथ्यादृष्टि ही रहा। इतना ही नुकसान होगा की सुगति न होकर कुगति होगी। परन्तु अध्यात्म-उपदेश न होनेपर बहुत जीवोंके मोक्षमार्गकी प्राप्तिका अभाव होता है और इसमें बहुत जीवोंका बहुत बुरा होता है; इसलिये अध्यात्म-उपदेशका निषेध नहीं करना।
तथा कितने ही जीव कहते हैं कि द्रव्यानुयोगरूप अध्यात्म-उपदेश है वह उत्कृष्ट है; सो उच्चदशाको प्राप्त हों उनको कार्यकारी है; निचली दशावालोंको व्रतसंयमादिकका ही उपदेश देना योग्य है।
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com