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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २७६] [मोक्षमार्गप्रकाशक स्निग्ध-रूक्षादिकके अंश निरूपित किये हैं, वे आज्ञा से ही प्रमाण होते हैं। इसी प्रकार अन्यत्र जानना। तथा करणानुयोगमें छद्मस्थोंकि प्रवृत्ति के अनुसार वर्णन नहीं किया है, केवलज्ञानगम्य पदार्थोंका निरूपण है। जिस प्रकार कितने ही जीव तो द्रव्यादिकका विचार करते हैं व व्रतादिक पालते हैं; परन्तु उनके अंतरंग सम्यक्त्वचारित्र शक्ति नहीं है इसलिये उनको मिथ्यादृष्टि-अव्रती कहते हैं। तथा कितने ही जीव द्रव्यादिकके व व्रतादिकके विचार रहित हैं, अन्य कार्यों में प्रवर्तते हैं, व निद्रादि द्वारा निर्विचार हो रहे हैं; परन्तु उनके सम्यक्त्वादिशक्तिका सद्भाव है इसलिये उनको सम्यक्त्वी व व्रती कहते हैं। तथा किसी जीव के कषायोंकी प्रवृत्ति तो बहुत है और उसके अंतरंग कषायशक्ति थोड़ी है, तो उसे मन्दकषायी कहते हैं। तथा किसी जीव के कषायोंकी प्रवृत्ति तो थोड़ी है और उनके अंतरंग कषायशक्ति बहुत है, तो उसे तीव्रकषायी कहते हैं। जैसे - व्यंतरादिक देव कषायोंसे नगर नाशादि कार्य करते हैं, तथापि उनके थोड़ी कषायशक्तिसे पीत लेश्या कही है । और एकेन्द्रियादिक जीव कषाय कार्य करते दिखायी नहीं देते, तथापि उनके बहुत कषायशक्तिसे कृष्णादि लेश्या कही है। तथा सर्वाथसिद्धिके देव कषायरूप थोड़े प्रवर्तते हैं, उनके बहुत कषायशक्तिसे असंयम कहा है। और पंचम गुणस्थानी व्यापार अबह्मादि कषायकार्यरूप बहत प्रवर्तते हैं. उनके मन्दकषायशक्तिसे देशसंयम कहा है। इसी प्रकार अन्यत्र जानना। तथा किसी जीवके मन-वचन-कायकी चेष्टा थोड़ी होती दिखायी दे, तथापि कर्माकर्षण शक्तिकी अपेक्षा बहुत योग कहा है। किसीके चेष्टा बहुत दिखायी दे, तथापि शक्तिकी हीनता से अल्प योग कहा है। जैसे - केवली गमनादि क्रिया रहित हुए, वहाँ भी उनके योग बहुत कहा है। द्वीन्द्रियादिक जीव गमनादि करते हैं, तथापि उनके योग अल्प कहा है। इसी प्रकार अन्यत्र जानना। तथा कहीं जिसकी व्यक्तता कुछ भासित नहीं होती, तथापि सूक्ष्मशक्तिके सद्भावसे उसका वहाँ अस्तित्व कहा है। जैसे – मुनिके अब्रह्म कार्य कुछ नहीं है, तथापि नववें गुणस्थानपर्यन्त मैथुन संज्ञा कही है। अहमिन्द्रोंके दुःखका कारण व्यक्त नहीं है, तथापि कदाचित् असाताका उदय कहा है। इसी प्रकार अन्यत्र जानना। तथा करणानुयोग सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रादिक धर्मका निरूपण कर्मप्रकृतियों के उपशमादिककी अपेक्षासहित सूक्ष्मशक्ति जैसे पायी जाती है वैसे गुणस्थानादिमें निरूपण करता है व सम्यग्दर्शनादिके विषयभूत जीवादिकोंका भी निरूपण सूक्ष्मभेदादि सहित करता Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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