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सातवाँ अधिकार]
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अपेक्षा परीषह सहनादिको सुखका कारण जानता है, और विषयसेवनादिको दुःखका कारण जानता है।
तथा तत्काल परीषह सहनादिकसे दु:ख होना मानता है, और विषयसेवनादिकसे सुख मानता है; तथा जिनसे सुख-दुःख का होना माना जाये उनमें इष्ट-अनिष्ट बुद्धिसे राग-द्वेषरूप अभिप्रायका अभाव नहीं होता; और जहाँ राग-द्वेष हैं वहाँ चारित्र नहीं होता। इसलिये यह द्रव्यलिंगी विषयसेवन छोडकर तपश्चरणादि करता है तथापि असंयमी ही है। सिद्धान्तमें असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टिसे भी इसे हीन कहा है; क्योंकि उनके चौथापाँचवा गुणस्थान है और इसके पहला ही गुणस्थान है।
यहाँ कोई कहे कि असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टिके कषायोंकी प्रवृत्ति विशेष है और द्रव्यलिंगी मुनिके थोड़ी है; इसीसे असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टि तो सोलहवें स्वर्गपर्यन्त ही जाते हैं और द्रव्यलिंगी अन्तिम ग्रैवेयकपर्यन्त जाता है। इसलिये भावलिंगी मुनिसे तो द्रव्यलिंगीको हीन कहो, उसे असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टिसे हीन कैसे कहा जाय ?
समाधान :- असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टिके कषायोंकी प्रवृत्ति तो है; परन्तु श्रद्धानमें किसीभी कषायके करनेका अभिप्राय नहीं है। तथा द्रव्यलिंगीके शुभकषाय करनेका अभिप्राय पाया जाता है, श्रद्धानमें उन्हें भला जानता है; इसलिये श्रद्धानकी अपेक्षा असंयत सम्यग्दृष्टिसे भी इसके अधिक कषाय है।
तथा द्रव्यलिंगीके योगोंकी प्रवृत्ति शुभरूप बहुत होती है और अघातिकर्मोंमें पुण्यपापबन्धका विशेष शुभ-अशुभ योगोंके अनुसार है, इसलिये वह अन्तिम ग्रैवेयकपर्यन्त पहुँचता है; परन्तु वह कुछ कार्यकारी नहीं है, क्योंकि अघातिया कर्म आत्मगुणके घातक नहीं हैं, उनके उदयसे उच्च-नीचपद प्राप्त किये तो क्या हुआ ? वे तो बाह्य संयोगमात्र संसारदशाके स्वांग हैं; आप तो आत्मा है; इसलिये आत्मगुणके घातक जो घातियाकर्म हैं उनकी हीनता कार्यकारी है।
उन घातिया कर्मोंका बन्ध बाह्यप्रवृत्तिके अनुसार नहीं है, अंतरंग कषायशक्तिके अनुसार है; इसीलिये द्रव्यलिंगीकी अपेक्षा असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टिके घातिकर्मोंका बन्ध थोड़ा है। द्रव्यलिंगीके तो सर्व घातिकर्मोका बन्ध बहुत स्थिति-अनुभाग सहित होता है, और असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्व-अनन्तानुबन्धी आदि कर्मोंका तो बन्ध है ही नहीं, अवशेषोंका बन्ध होता है वह अल्प स्थिति-अनुभाग सहित होता है। तथा द्रव्यलिंगीके कदापि गुणश्रेणी निर्जरा नहीं होती, सम्यग्दृष्टिके कदाचित् होती है और देश व सकल
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