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सातवाँ अधिकार ]
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अथवा महंतपनेके लोभसे परस्त्रीका सेवन नहीं करता, तो उसे त्यागी नहीं कहते। वैसे ही यह क्रोधादिकका त्यागी नहीं है। तो कैसे त्यागी होता है ? पदार्थ अनिष्ट-इष्ट भासित होनेसे क्रोधादिक होते हैं; जब तत्त्वज्ञानके अभ्याससे कोई इष्ट-अनिष्ट भासित न हो, तब स्वयमेव ही क्रोधादिक उत्पन्न नहीं होते; तब सच्चा धर्म होता है।
अनुप्रेक्षा :- तथा अनित्यादि चिंतवनसे शरीरादिकको बुरा जान, हितकारी न जानकर उनसे उदास होना; उसका नाम अनुप्रेक्षा कहता है। सो यह तो जैसे कोई मित्र था तब उससे राग था और पश्चात् उसके अवगुण देखकर उदासीन हुआ; उसी प्रकार शरीरादिक से राग था, पश्चात् अनित्यादि अवगुण अवलोककर उदासीन हुआ; परन्तु ऐसी उदासीनता तो द्वेषरूप है। अपना और शरीरादिकका जहाँ-जैसा स्वभाव है वैसा पहिचानकर, भ्रमको मिटाकर, भला जानकर, राग नहीं करना और बुरा जानकर द्वेष नहीं करना; ऐसी सच्ची उदासीनताके अर्थ यथार्थ अनित्यत्वादिकका चिंतवन करना ही सच्ची अनुप्रेक्षा है।।
परीषहजय :- तथा क्षुधादिक होनेपर उनके नाशका उपाय नहीं करना; उसे परीषह सहना कहता है। सो उपाय तो नहीं किया और अंतरंगमें क्षुधादि अनिष्ट सामग्री मिलनेपर दुःखी हुआ, रति आदिका कारण मिलनेपर सुखी हुआ; तो वे दुःख-सुखरूप परिणाम हैं, वही आर्तध्यान-रौद्रध्यान हैं। ऐसे भावोंसे संवर कैसे हो? इसलिये दुःखका कारण मिलनेपर दुःखी न हो और सुखका कारण मिलनेपर सुखी न हो, ज्ञेयरूपसे उनका जाननेवाला ही रहे; वही सच्चा परीषहसहन है।
चारित्र :- तथा हिंसादि सावद्ययोगके त्यागको चारित्र मानता है, वहाँ महाव्रतादिरूप शुभयोगको उपादेयपने से ग्राह्य मानता है। परन्तु तत्त्वार्थसूत्रमें आस्रव पदार्थका निरूपण करते हुए महाव्रत-अणुव्रतको भी आस्रवरूप कहा है। वे उपादेय कैसे हों ? तथा आस्रव तो बन्धका साधक है और चारित्र मोक्षका साधक है; इसलिये महाव्रतादिरूप आम्रवभावोंको चारित्रपना संभव नहीं होता; सकल कषायरहित जो उदासीनभाव उसीका नाम चारित्र है।
जो चारित्रमोहके देशघाती स्पर्द्धकोंके उदयसे महामन्द प्रशस्तराग होता है, वह चारित्रका मल है। उसे छूटता न जानकर उसका त्याग नहीं करते, सावद्ययोगका ही त्याग करते हैं। परन्तु जैसे कोई पुरुष कन्दमूलादि बहुत दोषवाली हरितकायका त्याग करता है, और कितनी ही हरितकायोंका भक्षण करता है; परन्तु उसे धर्म नहीं मानता; उसी प्रकार मुनि हिंसादि तीव्रकषायरूप भावोंका त्याग करते हैं, और कितने ही मन्दकषायरूप महाव्रतादिका पालन करते हैं; परन्तु उसे मोक्षमार्ग नहीं मानते।
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