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छठवाँ अधिकार ]
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बालककी भाँति कुतूहल करते रहते हैं। जिस प्रकार बालक कुतूहल द्वारा अपनेको हीन दिखलाता है, चिढ़ाता है, गाली सुनाता है, ऊँचे स्वरसे रोता है, बादमें हँसने लग जाता है; उसी प्रकार व्यन्तर चेष्टा करते हैं । यदि कुस्थानहीके निवासी हों तो उत्तमस्थानमें आते है; वहाँ किसके लानेसे आते है ? अपने आप आते हैं तो अपनी शक्ति होनेपर कुस्थानमें किसलिये रहते हैं? इसलिये इनका ठिकाना तो जहाँ उत्पन्न होते हैं वहाँ इस पृथ्वीके नीचे व ऊपर है सो मनोज्ञ है । कुतूहलके लिए जो चाहें सो कहते हैं। यदि इनको पीड़ा होती हो तो रोते-रोते हँसने कैसे लग जाते हैं ?
इतना है कि मंत्रादिककी अचिंत्यशक्ति है; सो किसी सच्चे मन्त्रके निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध हो तो उसके किंचित् गमनादि नहीं हो सकते, व किंचित् दुःख उत्पन्न होता है, व कोई प्रबल उसे मना करे तब रह जाता है व आप ही रह जाता है; - इत्यादि मन्त्रकी शक्ति है, परन्तु जलाना आदि नहीं होता । मन्त्रवाले जलाया कहते है; वह फिर प्रगट हो जाता है, क्योंकि वैक्रियिक शरीरका जलाना आदि सम्भव नहीं है ।
व्यन्तरोंके अवधिज्ञान किसीको अल्प क्षेत्र - काल जाननेका है, किसीको बहुत है। वहाँ उनके इच्छा हो और अपनेको ज्ञान बहुत हो तो अप्रत्यक्षको पूछने पर उसका उत्तर देते हैं। अल्प ज्ञान हो तो अन्य महत् ज्ञानीसे पूछ आकर जवाब देते हैं । अपनेको अल्प ज्ञान हो व इच्छा न हो तो पूछनेपर उसका उत्तर नहीं देते ऐसा जानना । अल्पज्ञानवाले व्यन्तरादिकको उत्पन्न होनेके पश्चात् कितने काल ही पूर्वजन्मका ज्ञान हो सकता है, फिर उसका स्मरणमात्र रहता है, इसलिये वहाँ इच्छा द्वारा आप कुछ चेष्टा करें तो करते हैं, पूर्व जन्मकी बातें कहते हैं; कोई अन्य बात पूछे तो अवधिज्ञान तो थोड़ा है, बिना जाने किस प्रकार कहें? जिसका उत्तर आप न दे सकें व इच्छा न हो, वहाँ मान कुतूहलादिकसे उत्तर नहीं देते व झूठ बोलते हैं - ऐसा जानना ।
देवोंमें ऐसी शक्ति है अपने व अन्यके शरीरको व पुद्गल स्कन्धको जैसी इच्छा हो तदनुसार परिणमित करते हैं; इसलिये नानाआकारादिरूप आप होते हैं व अन्य नाना चरित्र दिखाते हैं । अन्य जीवके शरीरको रोगादियुक्त करते हैं।
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यहाँ इतना है कि अपने शरीरको व अन्य पुद्गल स्कन्धोंको जितनी शक्ति हो उतने ही परिणमित कर सकते है; इसलिये सर्वकार्य करनेकी शक्ति नहीं है। अन्य जीवके शरीरादिको उसके पुण्य-पाप अनुसार परिणमित कर सकते हैं। उसके पुण्यका उदय हो तो आप रोगादिरूप परिणमित नहीं कर सकता, और पापउदय हो तो उसका इष्ट कार्य नहीं कर सकता।
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