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पाँचवा अधिकार]
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तथा वहाँ प्रत्यक्ष , अनुमान, आगम यह तीन प्रमाण कहते हैं; परन्तु उनके सत्यअसत्य का निर्णय जैन के न्यायग्रन्थों से जानना।
तथा इस सांख्यमत में कोई तो ईश्वर को मानते नहीं हैं, कितनेही एक पुरुषको ईश्वर मानते हैं, कितने ही शिव को, कितने ही नारायण को देव मानते हैं। अपनी इच्छानुसार कल्पना करते हैं, कुछ निश्चय नहीं है। तथा इस मत में कितने ही जटा धारण करते हैं, कितने ही चोटी रखते हैं, कितने ही मुण्डित होते हैं, कितने ही कत्थई वस्त्र पहिनते हैं; इत्यादि अनेक प्रकार से भेष धारण करके तत्त्वज्ञान के आश्रय से महन्त कहलाते
इस प्रकार सांख्यमत का निरूपण किया।
शिवमत
तथा शिवमत में दो भेद हैं- नैयायिक, वैशेषिक।
नैयायिकमत
वहाँ नैयायिकमत में सोलह तत्त्व कहते हैं-प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रहस्थान।
वहाँ प्रमाण चार प्रकार के कहते हैं- प्रत्यक्ष , अनुमान, शब्द, उपमा। तथा आत्मा, देह, अर्थ, बुद्धि इत्यादि प्रमेय कहते हैं। ‘तथा यह क्या है ?' उसका नाम संशय है। जिसके अर्थ प्रवृत्ति हो सो प्रयोजन है। जिसे वादी-प्रतिवादी मानें सो दृष्टान्त है। दृष्टान्त द्वारा जिसे ठहरायें वह सिद्धान्त है। तथा अनुमान के प्रतिज्ञा आदि पाँच अंग वह अवयव हैं। संशय दूर होनेपर किसी विचार से ठीक हो सो तर्क है। पश्चात प्रतीतिरूप जानना सो निर्णय है। आचार्य-शिष्य में पक्ष-प्रतिपक्ष द्वारा अभ्यास सो वाद है। जानने की इच्छारूप कथामें जो छल-जाति आदि दूषण हो सो जल्प है। प्रतिपक्ष रहित वाद सो वितंडा है। सच्चे हेतु नहीं हैं ऐसे असिद्ध आदि भेद सहित हेत्वाभास है। छलसहित वचन सो छल है। सच्च दूषण नहीं हैं ऐसे दूषणाभास सो जाति है। जिससे प्रतिवादी का निग्रह हो सो निग्रह -स्थान है।
इस प्रकार संशयादि तत्त्व कहे हैं, सो यह कोई वस्तुस्वरूप तत्त्व तो हैं नहीं। ज्ञानका निर्णय करने को व वाद द्वारा पांडित्य प्रगट करने को कारणभूत विचाररूप तत्त्व कहे हैं; सो इनसे परमार्थकार्य क्या होगा? काम-क्रोधादि भावको मिटाकर निराकुल होना सो कार्य है; वह प्रयोजनतो यहाँ कुछ दिखाया नहीं है, पंडिताई की नाना युक्तियाँ बनायीं, सो यह भी एक चातुर्य है इसलिये यह तत्त्वभूत नहीं हैं।
फिर कहोगे - इनको जाने बिना प्रयोजनभूत तत्त्वोंका निर्णय नहीं कर सकते, इसलिये यह तत्त्व कहें हैं; सो ऐसी परम्परा तो व्याकरणवाले भी कहते हैं कि - व्याकरण
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