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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ११२] [मोक्षमार्गप्रकाशक तथा गणेशादिककी मैल आदि से उत्पत्ति बतलाते हैं व किसीके अंग किसीमें जुड़े बतलाते हैं। इत्यादि अनेक प्रत्यक्षविरुद्ध कहते हैं। अवतार मीमांसा तथा चौबीस अवतार हुए कहते हैं; वहाँ कितने ही अवतारोंको पूर्णावतार कहते हैं, कितनोंको अंशावतार कहते हैं। सो पूर्णावतार हुए तब ब्रह्म अन्यत्र व्यापक रहा या नहीं रहा ? यदि रहा तो इन अवतारोंको पूर्णावतार किसलिये कहते हो ? यदि (व्यापक) नहीं रहा तो एतावन्मात्र ही ब्रह्म रहा। तथा अंशावतार हुए वहाँ ब्रह्मका अंश तो सर्वत्र कहते हो, इनमें क्या अधिकता हुई ? तथा कार्य तो तुच्छ था और उसके लिये ब्रह्मने स्वयं अवतार धारण किया कहते हैं सो मालूम होता है बिना अवतार धारण किये ब्रह्मकी शक्ति वह कार्य करने की नहीं थी, क्योंकि जो कार्य अल्प उद्यमसे हो वहाँ बहुत उद्यम किसलिये करें ? __तथा अवतारोंमें मच्छ, कच्छादि अवतार हुए सो किंचित् कार्य करनेके अर्थ हीन तिर्यंच पर्यायरूप हुआ सो कैसे सम्भव है ? तथा प्रल्हादके अर्थ नरसिह अवतार हुआ, सो हरिणांकुशको ऐसा क्यों होने दिया, और कितने ही काल तक अपने भक्तको किसलिये दुःख दिलाया ? तथा ऐसा रूप किसलिये धारण किया ? तथा नाभिराजाके वृषभावतार हुआ बतलाते हैं, सो नाभिको पुत्रपने का सुख उपजानेको अवतार धारण किया। घोर तपश्चरण किसलिये किया ? उनको तो कुछ साध्य था ही नहीं। कहेगा कि जगतके दिखलाने को किया; तब कोई अवतार तो तपश्चरण दिखाये, कोई अवतार भोगादिक दिखाये, वहाँ जगत किसको भला जानेगा? फिर (वह) कहता है - एक अरहंत नाम का राजा हआ उसने वषभावतारका मत अंगीकार करके जैनमत प्रगट किया, सो जैन में कोई एक अरहंत नहीं हुआ। जो सर्वज्ञपद पाकर पूजने योग्य हो उसी का नाम अर्हत् है। तथा राम-कृष्ण इन दोनों अवतारोंको मुख्य कहते हैं सो रामावतारने क्या किया ? सीताके अर्थ विलाप करके रावणसे लड़कर उसे मारकर राज्य किया। और कृष्णावतारमें पहले ग्वाला होकर परस्त्री गोपियोंके अर्थ नाना विपरीत निंद्य चेष्टाएँ करके, फिर * सनत्कुमार-१, शूकरावतार-२, देवर्षिनारद-३, नर-नारायण-४, कपिल-५, दत्तात्रय-६, यज्ञपुरुष-७, ऋषभावतार-८, पृथुअवतार-९, मत्स्य-१०, कच्छप-११, धन्वन्तरि-१२, मोहिनी-१३, नृसिंहावतार-१४, वामन–१५, परशुराम-१६, व्यास१७, हंस-१८, रामवतार-१९, कृष्णावतार-२०, हयग्रीव-२१, हरि-२२, बुद्ध-२३, और कल्कि यह २४ अवतार माने जाते हैं। भगवत स्कन्ध ५, अध्याय ६, ११ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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