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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates चौथा अधिकार मिथ्यादर्शन - ज्ञान - चारित्रका निरूपण दोहा इस भवके सब दुःखनिके, कारण मिथ्याभाव । तिनिकी सत्ता नाश करि, प्रगटे मोक्ष उपाव ।। अब यहाँ संसार दुःखोंके बीजभूत मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र हैं उनके स्वरूपका विशेष निरूपण करते । जैसे वैद्य है सो रोगके कारणोंको विशेषरूपसे कहे तो रोगी कुपथ्य सेवन न करे, तब रोग रहित हो। उसी प्रकार यहाँ संसार के कारणों का विशेष निरूपण करते हैं, जिससे संसारी मिथ्यात्वादिकका सेवन न करे, तब संसार रहित हो। इसलिये मिथ्यादर्शनादिकका विशेष निरूपण करते हैं : मिथ्यादर्शनका स्वरूप यह जीव अनादिसे कर्म सम्बन्ध सहित है । उसको दर्शन मोह के उदय से हुआ जो अतत्त्वश्रद्धान उसका नाम मिथ्यादर्शन है। क्योंकि तद्भाव सो तत्त्व, अर्थात् जो श्रद्धान करने योग्य अर्थ उसका जो भाव-स्वरूप उसका नाम तत्त्व है। तत्त्व नहीं उसका नाम अतत्त्व है। इसलिये अतत्त्व है वह असत्य है; अतः इसी का नाम मिथ्या है। तथा 'ऐसे ही यह है' – ऐसा प्रतीतिभाव उसका नाम श्रद्धान है। यहाँ श्रद्धानहीका नाम दर्शन है। यद्यपि दर्शन का शब्दार्थ सामान्य अवलोकन है तथापि यहाँ प्रकरणवश ही इसी धातु का अर्थ श्रद्धान जानना। - ऐसा ही सर्वार्थसिद्धि नामक सूत्र की टीका में कहा है। क्योंकि सामान्य अवलोकन संसार - मोक्षका कारण नहीं होता; श्रद्धान ही संसार - मोक्षका कारण है, इसलिये संसार - मोक्षके कारण में दर्शन का अर्थ श्रद्धान ही जानना । तथा मिथ्यारूप जो दर्शन अर्थात् श्रद्धान, उसका नाम मिथ्यादर्शन है। जैसा वस्तु का स्वरूप नहीं है वैसा मानना, जैसा है वैसा नहीं मानना, ऐसा विपरीताभिनिवेश अर्थात् विपरीत अभिप्राय, उसको लिये हुए मिथ्यादर्शन होता है। Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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