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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ७२] [मोक्षमार्गप्रकाशक मोक्षसुख और उसकी प्राप्तिका उपाय अब, जिन जीवोंको दुःखसे छूटना हो वे इच्छा दूर करनेका उपाय करो। तथा इच्छा दर तब ही होती है जब मिथ्यात्व, अज्ञान. असंयमका अभाव हो और सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्रकी प्राप्ति हो। इसलिये इसी कार्यका उद्यम करना योग्य है। ऐसा साधन करने पर जितनी-जितनी इच्छा मिटे उतना-उतना दुःख दूर होता जाता है और जब मोहके सर्वथा अभावसे सर्व इच्छाका अभाव हो तब सर्व दु:ख मिटता है, सच्चा सुख प्रगट होता है। तथा ज्ञानावरण-दर्शनावरण और अन्तरायका अभाव हो तब इच्छाके कारणभूत क्षायोपशमिक ज्ञान-दर्शनका तथा शक्तिहीनपनेका भी अभाव होता है, अनन्त ज्ञान-दर्शन-वीर्यकी प्राप्ति होती है। तथा कितने ही काल पश्चात् अघातिकर्मोंका भी अभाव हो तब इच्छाके बाह्य कारणोंका भी अभाव होता है। क्योंकि मोह चले जानेके बाद किसी भी कालमें कोई इच्छा उत्पन्न करनेमें समर्थ नहीं थे, मोहके होने पर कारण थे, इसलिये कारण कहे हैं; उनका भी अभाव हुआ तब जीव सिद्धपदको प्राप्त होते हैं। वहाँ दुःखका तथा दुःखके कारणोंका सर्वथा अभाव होनेसे सदाकाल अनुपम, अखंडित, सर्वोत्कृष्ट आनन्द सहित अनन्तकाल विराजमान रहते हैं। वही बतलाते हैं : ज्ञानावरण, दर्शनावरण का क्षयोपशम होनेपर तथा उदय होनेपर मोह द्वारा एक-एक विषयको देखने-जाननेकी इच्छासे महा व्याकुल होता था; अब मोहका अभाव होनेसे इच्छाका भी अभाव हुआ इसलिये दुःखका अभाव हुआ है। तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण का क्षय होनेसे सर्व इन्द्रियोंको सर्व विषयोंका युगपत् ग्रहण हुआ, इसलिये दुःखका कारण भी दूर हुआ है वही दिखाते हैं। जैसे - नेत्र द्वारा एक-एक विषयको देखना चाहता था, अब त्रिकालवर्ती त्रिलोकके सर्व वर्णोंको युगपत् देखता है, कोई बिन देखा नहीं रहा जिसके देखनेकी इच्छा उत्पन्न हो। इसी प्रकार स्पर्शनादि द्वारा एक-एक विषयका ग्रहण करना चाहता था, अब त्रिकालवर्ती त्रिलोकके सर्व स्पर्श, रस, गन्ध तथा शब्दोंका युगपत् ग्रहण करता है, कोई बिना ग्रहण किया नहीं रहा जिसका ग्रहण करनेकी इच्छा उत्पन्न हो। यहाँ कोई कहे कि – शरीरादिक बिना ग्रहण कैसे होगा ? समाधान :- इन्द्रियज्ञान होनेपर तो द्रव्येन्द्रियों आदिके बिना ग्रहण नहीं होता था। अब ऐसा स्वभाव प्रगट हुआ कि बिना इन्द्रियोंके ही ग्रहण होता है। यहाँ कोई कहे कि :- जैसे मन द्वारा स्पर्शादिकको जानते हैं उसी प्रकार जानना होता होगा; त्वचा ,जिह्वा आदिसे ग्रहण होता है वैसे नहीं होता होगा; सो ऐसा नहीं है - Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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