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નાટક સમયસારના પદ
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મંગલાચરણ (સવૈયા એકત્રીસા) मोह मद पाइ जिनि संसारी विकल कीने,
याहीअजानुबाहु बिरद बिहतु है। ऐसौ बंध-वीर विकराल महा जाल सम,
ग्यान मंद करै चंद राहु ज्यौं गहतु है।। ताकौ बल भंजिवेकौं घटमैं प्रगट भयौ,
उद्धत उदार जाकौ उद्दिम महतु है। सो है समकित सूर आनंद-अंकूर ताहि,
निरखि बनारसी नमो नमो कहतु है।।२।।
જ્ઞાનચેતના અને કર્મચેતનાનું વર્ણન. (સવૈયા એકત્રીસા) जहां परमातम कलाकौ परकास तहां,
धरम धरामैं सत्य सूरजकी धूप है। जहां सुभ असुभ करमको गढ़ास तहां,
मोहके विलासमैं महा अंधेर कूप है। फैली फिरै घटासी छटासी घन-घटा बीचि,
चेतनकी चेतना दुहूंधा गुपचूप है। बुद्धिसौं न गही जाइ बैनसौं न कही जाइ,
पानीकी तरंग जैसैं पानीमैं गुडूप है।।३।।
કર્મબંધનું કારણ અશુદ્ધ ઉપયોગ છે. (સવૈયા એકત્રીસા) कर्मजाल-वर्गनासौं जगमैं न बंधै जीव,
बंधै न कदापि मन-वच-काय-जोगसौं। चेतन अचेतनकी हिंसासौं न बंधै जीव,
बंधै न अलख पंच-विषै-विष-रोगसौं। कर्मसौं अबंध सिद्ध जोगसौं अबंध जिन,
__हिंसासौं अबंध साधु ग्याता विषै-भोगसौं। इत्यादिक वस्तुके मिलापसौं न बंधै जीव,