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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
* भावार्थ :- जो सीधा आत्मा के द्वारा ही जानता है वह ज्ञान प्रत्यक्ष है। इन्द्रिय-ज्ञान परद्रव्यरूप इन्द्रियों के द्वारा जानता है इसलिये वह प्रत्यक्ष नहीं है ।। २३ ।।
( श्री प्रवचनसार जी, गाथा - ५७ भावार्थ ) परपदार्थों का हीनाधिक ज्ञान आत्मानुभव में प्रयोजनवान नहीं है। इसलिये पर द्रव्य के अधिक ज्ञान को करने की आकुलता छोड़कर आत्म अनुभव करने का अभ्यास कर, उसमें तेरा भला है ।। २४ ।। ( श्री प्रवचनसार जी, गाथा - ३३ का भावार्थ ) (प्रकाशक ब्र. लाडमल जैन, श्री महावीर जी, राजस्थान )
* भावार्थ :- इन्द्रियों के साथ पदार्थ का ( विषयी के साथ विषय का) सन्निकर्ष सम्बन्ध हो तभी ( अवग्रह - ईहा - अवाय - धारणारूप क्रम से) इन्द्रिय ज्ञान पदार्थ को जान सकता है। नष्ट और अनुत्पन्न पदार्थों के साथ इन्द्रियों का सन्निकर्ष-सम्बन्ध न होने से इन्द्रिय ज्ञान उन्हें नहीं जान सकता। इसलिये इन्द्रिय ज्ञान हीन है, हेय है ।।२५।। ( श्री प्रवचनसार जी, गाथा - ४० भावार्थ ) * टीका :- इन्द्रिय ज्ञान उपदेश, अन्तःकरण और इन्द्रिय इत्यादि को विरूपकारणता से ( ग्रहण करके) और उपलब्धि ( क्षयोपशम ), संस्कार इत्यादि को अंतरंग स्वरूपकारणता से ग्रहण करके प्रवृत्त होता है; और वह प्रवृत्त होता हुआ सप्रदेश को ही जानता है, क्योंकि वह स्थूल को जानने वाला है, अप्रदेश को नहीं जानता, ( क्योंकि वह सूक्ष्म को जानने वाला नहीं है ); वह मूर्त को ही जानता है, क्योंकि वैसे ( मूर्तिक) विषय के साथ उसका सम्बन्ध है, वह अमूर्त को नहीं जानता (क्योंकि अमूर्तिक विषय के साथ इन्द्रिय ज्ञान का सम्बन्ध नहीं है ); वह वर्तमान को ही जानता है क्योंकि विषय-विषयी के सन्निपात सद्भाव है, वह प्रवर्तित हो चुकने वाले को
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* आत्मा वास्तव में पर को नहीं जानता है*
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