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इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
आत्मा जानने में नही आता वैसे ही परसत्तावलम्बनशील ज्ञान में भी आत्मा जानने में नहीं आता – इसलिए यह बंध का कारण है, मोक्ष का कारण नहीं होता। स्वसत्तावलम्बनशील ज्ञान ही मोक्ष है और मोक्ष का कारण है।
इन्द्रियज्ञान से भेदज्ञान की बात बहुत ही सूक्ष्म और अतिविरल है। जिनागम में शरीर से, कर्म से, रागादिक से भेदज्ञान की बात तो जगह-जगह आती है परन्तु – इन सबसे एकत्व करने वाला मूल में तो इन्द्रियज्ञान है – कि जिससे भेदज्ञान की बात तो कहीं-कहीं आती है। इसलिए अनेक शास्त्रों में जहाँ-जहाँ इन्द्रियज्ञान के सम्बन्ध में उल्लेख आये हैं उनका संकलनरूप यदि एक पुस्तक तैयार होवे तो समाज के मुमुक्षु जीवों का वहाँ ध्यान जावे! - ऐसा भाव मुझे बहुत रहता था! आज मुझे बहुत खुशी – प्रसन्नता है कि यह पुस्तक तैयार हो गयी है - जो पात्र जीवों को आत्मलाभ में निमित्त बनेगी।
__'इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है' इस सम्बन्धी आचार्यों के, संतों के, और ज्ञानियों के आगमों में वचनामृतरूपी मणि-रत्न, हीरा-मोती अलग - अलग बिखरे हुए थे। उनको एक धागा (डोरा) रूपी ग्रंथ में पिरो दिया है, संकलित किया है। जो एक सुन्दर कंठहार की तरह शोभा को प्राप्त हुआ है। इस 'इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है' संकलनरूपी कंठहार को जो अपने हृदय में अवधारण करेगा वह मुक्तिसुन्दरी को अवश्यमेव वरेगा।
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