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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है उत्तर : विकल्प में तो थाक ही लगे ने! मैं ऐसा हूँ-ऐसा अनुभव करने में शान्ति है।।५५७ ।। (श्री द्रव्यदृष्टि प्रकाश , भाग ३, पृष्ठ २०, बोल ८९) * शास्त्र सब पढ़ लेवे। लेकिन अनुभव बिना उसका भाव ख्याल में आते नहीं। सब अपेक्षा तो जान लेवे। लेकिन उसमें ही (जानपणा में ही) फँस जाते।।५५८ ।। (श्री द्रव्यदृष्टि प्रकाश, भाग ३, पृष्ठ २५ , बोल १०९) * जो निर्विकल्पता होती है उसमें तो सारा जगत, देह, विकल्प, उघाड़ आदि कुछ दिखते ही नहीं, एक आप की आप दिखता है। अन्दर में जावे तो बाहर का कुछ दिखे नहीं।।५५९ ।। (श्री द्रव्यदृष्टि प्रकाश , भाग ३, पृष्ठ २६ , बोल ११४ ) * शास्त्र से ज्ञान नहीं होता, ऐसा सुने-और “ बराबर है" ऐसा कहे मगर अन्दर में (अभिप्राय में) तो आप बाहर से (शास्त्र आदि से) ज्ञान आता है, ऐसा मानता है। वाणी से लाभ नहीं ऐसा कहवे मगर मान्यता में सुनने से प्रत्यक्ष लाभ होता दिखता है तो थोड़ा तो सुन लेऊ, इसमें नुकसान क्या है ? (अज्ञान में ऐसा भ्रम रहता है) अरे भैया। इसमें नुकसान ही होता है। लाभ नहीं। ऊपर से नुकसान कहे और अन्दर में लाभ मानकर प्रवर्ते, ओ कैसी बात ? उसमे अटक जाते हैं।।५६०।। (श्री द्रव्यदृष्टि प्रकाश, भाग ३, पृष्ठ २७, बोल ११६ ) * प्रश्न : द्रव्यलिंगी इतना स्पष्ट जानकर क्यों ‘त्रिकाली' में अपनापणा नहीं करते? * उत्तर : उसको सुख की जरूरत नहीं है। क्योंकि उसको एक समय २५९ * परसन्मुख हुआ ज्ञान जड़ है, अचेतन है । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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