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इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
आती है ? ना, जड़ की दशा के कारण राग होता है ? ना जड़ की पर्याय के कारण ज्ञान होता है ? ना,! अपने ज्ञान को न जानकर, पर को मैं जानता हूँ-ऐसा मानना अधर्म है।।५२४ ।।
(श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक, तीसरा अधिकार, पू. गुरुदेव श्री का प्रवचन, श्री सद्गुरु प्रवचन प्रसाद नं. ३२, पृष्ठ २३१-२३२)
* आत्मा ने मीठे पदार्थ को नहीं जाना है। स्व को जानता हुआ पर को उपचार से जानता है। अनुपचार बिना उपचार कहाँ से आवे? मीठे की पर्याय के अभावरूप रहता और अपने में अपने सदभाव रूप रहता अपने को जानता हूँ-ऐसा नहीं मानता हुआ पर को मैं जानता हूँ-ऐसा अज्ञानी मानते हैं।
जीव स्वाद नहीं ले सकता; उस समय की ज्ञान पर्याय उस समय वैसी ही सामर्थ्य वाली है-ऐसा नहीं मानकर-मैं पर को जानता हूँ वह मिथ्याभ्रांति और अज्ञान है। इसी कारण अनन्त संसार में भटकता है, भ्रमता है।।५२५ ।।
(श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक, तीसरा अधिकार, पू. गुरुदेव श्री का
प्रवचन, श्री सद्गुरु प्रवचन प्रसाद नं. ३२, पृष्ठ २३२)
* इस प्रकार ज्ञेय मिश्रित ज्ञान किया है परन्तु ज्ञेय-मिश्रित हआ नहीं है। ऐसे ज्ञेय मिश्रित ज्ञान द्वारा विषयों की ही प्रधानता भासती हैं। मेरी ज्ञानपर्याय मेरे से प्रवर्ती है-ऐसा भासित नहीं हुआ लेकिन विषयों से प्रवर्ती है ऐसा भासता है। इसको ( पर को) जाना , फूल को सूंघा-इस प्रकार पर को प्रधानता देता है। कल्पना में ज्ञेय और ज्ञान को मिश्रित करता है ( एकमेक मानता है) पाँच इन्द्रियों के विषयों को और मन के विषयों को अपने में एकमेक करता है।- ये चीजे हों तो जानने में
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* प्रथम द्रव्य को जान*
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