________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
अनंतबार गया है। आँख के द्वारा दर्शन किया, कान के द्वारा तीर्थंकर की वाणी सुनी वह सब इन्द्रियज्ञान है। यह ज्ञान ज्ञायक का नहीं है। ऐसी गंभीर बातें हैं।।४२७।।। ( श्री प्रवचनसार, गाथा १७२, अलिंग ग्रहण बोल १ के ऊपर
पू. गुरुदेव श्री के प्रवचन में से)
* जिसको अर्थात् इस आत्मा को, ग्राहक अर्थात् जाननहार है, इस जाननहार को जानना-लिंग अर्थात् इन्द्रियों (द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय) द्वारा नहीं होता है; क्योंकि भाव और द्रव्येन्द्रिय द्वारा जो जानता है वह खण्ड-खण्ड ज्ञान है।
ये आत्मज्ञान नहीं है, इसलिए ऐसा कहा कि, इन्द्रियों के द्वारा जिसको (आत्मा को) जानना नहीं होता, वो अलिंग ग्रहण है; इस प्रकार आत्मा अतीन्द्रिय ज्ञानमय है; वजन यहाँ है।।४२८ ।। __(श्री प्रवचनसार, गाथा १७२, अलिंग ग्रहण बोल १-२ के
__ऊपर पू. गुरुदेव श्री के प्रवचन में से)
* आत्मा अतीन्द्रिय ज्ञानमयी है और इन्द्रिय ज्ञानमय नहीं है, यह अस्ति-नास्ति है। समझ में आया कुछ ?
ये पाँच इन्द्रियों द्वारा जो जानना होता है वह तो खण्ड-खण्ड ज्ञान है; और इस खण्ड-खण्ड ज्ञानरूप आत्मा नहीं है। खण्ड-खण्ड ज्ञान के द्वारा जाने वह आत्मा नहीं हैं। वह तो अनात्मा है।
आत्मा अतीन्द्रिय ज्ञानमयी है। मन और इन्द्रियों का सम्बन्ध छोड़कर स्वयं अपने आत्मा के लक्ष से आत्मा को जाने; अखण्ड अतीन्द्रिय ज्ञान द्वारा जाने-तब उसको सम्यज्ञान कहते हैं। कारण कि वह पर्याय
२११
*ज्ञेय की पकड़ कहो या ज्ञेयाकार में अटक-एक ही बात है
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com