SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है * प्रश्न : और तब ही पर्याय का सच्चा ज्ञान होता है ने ? उत्तर : ज्ञान तब सच्चा होता है- ये बात यहाँ नहीं है। लेकिन ज्ञान जो द्रव्य को देखता है ( द्रव्य को जानता है) वह सच्चा है। पाँचों पर्यायों में रहता हुआ जो यह अखण्ड एकरूप तत्व है वह जीवद्रव्य स्वयं है। ऐसा देखने वाला ज्ञान सच्चा है। वजन यहाँ है कि 'वह सब जीवद्रव्य है ' - ऐसा भासता है ।। ३९३ ।। (श्री अध्यात्म प्रवचनरत्नत्रय, पृष्ठ १४२, अन्तिम पैराग्राफ ) * भाई ! ' पर्यायों स्वरूप विशेषों में रहता हुआ ' - मतलब कि पर के जानने में वह रहता है - ऐसा नहीं है परन्तु मात्र अपनी जो पाँच पर्याय हैं उनमें रहता है।। ३९४ ।। (श्री अध्यात्म प्रवचनरत्नत्रय, पृष्ठ १४३, पैराग्राफ ३ ) * अतः तू शरीर को मत देख, आकृति को मत देख, पर को मत देख। अरे! ये बाहर में तो तुझे कहाँ देखना है ? लेकिन ये सब जो तेरी पर्याय में जानने में आते हैं उस पर्याय को देखने वाली तेरी पर्याय चक्षु को बंद कर दे और खुले हुए ज्ञान के द्वारा द्रव्य को देख । जिससे तुझे अनन्त सुख का समुद्र भगवान का दर्शन होगा, तूं निहाल हो जायेगा। अहाहा...! अद्भुत बात है !! ।। ३९५ ।। (श्री अध्यात्म प्रवचनरत्नत्रय, पृष्ठ १४५, अंतिम पैराग्राफ ) * बाहर का करना ये तो दूर रहो- ये तो है ही नही, परन्तु बाहर में देखना भी नहीं है। भगवान ! तू जो देखता है ये तो तेरी पर्याय है। सूक्ष्म बात है भाई ! ।।३९६ ।। (श्री अध्यात्म प्रवचनरत्नत्रय, पृष्ठ १४८, पैराग्राफ २ ) २०० * एक भावक भाव, एक ज्ञेय का भाव उनसे अलग मैं ज्ञायकभाव हूँ* Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy