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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है प्रश्न : परन्तु पर के साथ ज्ञेय ज्ञायक सम्बन्ध कहने में आया है न ? उत्तर : यह सम्बन्ध तो व्यवहार से कहा है । निश्चय से तो छहों द्रव्य का ज्ञान मेरी पर्याय में मेरे से हुआ है। छह द्रव्यों की मौजूदगी के कारण से नहीं हुआ है, देखो, छह द्रव्य हैं, लेकिन छह द्रव्यों की मौजूदगी के कारण से मेरा ज्ञान नहीं हुआ है परन्तु मेरी पर्याय की ताकत से यह ज्ञान हुआ है। भाई! यह तो भगवान की वाणी में से निकला हुआ अकेला अमृत है। अहो! दिगम्बर संतों ने जगत् के सामने ऐसी बात कहकर परमामृत पिलाया है। ऐसी बात अन्यत्र कहीं नहीं है। अहा! कहते है जो छह द्रव्य हैं उसका जो ज्ञान हुआ है वह ज्ञान मेरा ज्ञेय है, छह द्रव्य मेरे ज्ञेय नहीं है। छह द्रव्यों के जानने मात्र मैं नहीं हूँ । प्रश्न : ज्ञान की पर्याय ( पर) ज्ञेय के कारण हुई है न; मतलब कि ज्ञेय है तो ज्ञान हुआ है न ? समाधान : नहीं, ऐसा नहीं है, यह ज्ञान तो अपनी पर्याय की सामर्थ्य से ही हुआ है और इसलिए अपनी पर्याय ही अपना ज्ञेय है। बारहवीं गाथा में व्यवहार जाना हुआ प्रयोजनवान कहा है, परन्तु इसका अर्थ ऐसा है कि उस-उस प्रकार की ज्ञान की पर्याय स्वयं अपने से होती है। व्यवहार का जो राग है, ऐसा ही उसका ज्ञान अपनी पर्याय में अपने से ही उत्पन्न होता है। ज्ञान का ऐसा ही कोई स्व पर प्रकाशक स्वभाव है, इसको पर की कोई अपेक्षा नहीं है। इसलिए अपनी पर्याय ही अपना ज्ञेय है, परन्तु वह व्यवहार राग ज्ञेय नहीं है। यह तो धैर्यवान पुरुष का काम है बापू! भगवान की वाणी को समझने के लिये भी धीरज चाहिए। जल्दबाजी से कहीं आम नहीं पकते । १५१ * पर ज्ञेय के लक्ष से इन्द्रियज्ञान प्रकट होता है* Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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