________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
वह ग्यारह अंग का ज्ञान नाश को प्राप्त होने पर कालक्रम से वह जीव निगोद में भी चला जाता है। अखण्ड आत्मा का ज्ञान करना वो ही मूल वस्तु है। इसके बिना भव-भ्रमण का अन्त नहीं आता है।।३१८ ।।
(ज्ञानगोष्ठी, प्रश्न नं. २९३, आत्मधर्म अंक ४२३ ,
___ जनवरी १९७९, पृष्ठ २६ )
* प्रश्न : सामान्य ज्ञान और विशेष ज्ञान में भेद और उनका फल बतलाते हुए स्पष्ट कीजिये कि सम्यग्दृष्टि इनमें से अपना ज्ञान किसे मानता है ?
उत्तर : विषयों में एकाकार हुए ज्ञान को विशेष ज्ञान अर्थात् मिथ्याज्ञान कहते हैं और उसका लक्ष छोड़कर अकेले सामान्य ज्ञान स्वभाव के अवलम्बन से उत्पन्न हुए ज्ञान को सामान्य ज्ञान अर्थात् सम्यग्ज्ञान कहते हैं। ज्ञान स्वभाव में एकाकार होकर प्रगट हुए ज्ञान को सामान्य ज्ञान-वीतरागी ज्ञान कहते हैं और उसी को जैन शासन कहते हैं आत्मानुभूति कहते हैं। सामान्य ज्ञान में आत्मा के आनन्द का स्वाद आता है। विशेष ज्ञान अर्थात् इन्द्रियज्ञान में आत्मा के आनन्द का स्वाद नहीं आता है अपितु आकुलता और दुःख का स्वाद आता है। ___ पर द्रव्य का अवलम्बन लेकर जो ज्ञान होता है वह विशेष ज्ञान है। भगवान की वाणी सुनकर जो ज्ञान हुआ वह इन्द्रियज्ञान है-विशेष ज्ञान है-वह आत्मा का ज्ञान-अतीन्द्रिय ज्ञान-सामान्य ज्ञान नहीं है। ज्ञानी को आत्मा का ज्ञान हुआ है, उस सामान्य ज्ञान को ज्ञानी अपना ज्ञान जानता है और पर को जानता हुआ इन्द्रियज्ञान जो अनेकाकर रूप परसत्तावलम्खी ज्ञान होता है, उसको अपना ज्ञान नहीं मानता है। जैसे पर ज्ञेय को अपना नहीं मानता, वैसे ही पर के ज्ञान को भी अपना ज्ञान नहीं मानता। जिसमें आनन्द का स्वाद आता है ऐसे आत्मज्ञान को ही अपना
१४०
* इन्द्रियज्ञान वैभाविक है
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com