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इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
हुई ) सर्व इन्द्रियाँ अर्थात् पाँच इन्द्रियाँ, उनको रोककर-निरोधकर, उसके बाद स्थिर हुए अंतरात्मा के द्वारा अर्थात् मन द्वारा जो स्वरूप भासता है, क्या करने से ? क्षण भर देखने से क्षणमात्र अनुभवने सेअर्थात् बहुत समय तक मन को स्थिर करना अशक्य होने से थोड़े समय तक मन का निरोध करके देखने से-जो चिदानन्द स्वरूप प्रतिभासता है, वह तत्व-तद्रूपतत्वस्वरूप परमात्मा का है।।१९७।।।
(श्री समाधितंत्र, गाथा ३० की टीका , श्री प्रभाचंद जी) * सर्व इन्द्रियों के विषयों में भ्रमती-प्रवर्त्तती चित्तवृत्ति को रोककर अर्थात् अन्तर्जल्पादि संकल्प विकल्पों से रहित होकर, उपयोग को अपने चिदानन्दस्वरूप में स्थिर करना; उस आत्मस्वरूप में स्थिर होने पर परमात्मस्वरूप का प्रतिभास होता है।
पाँच इन्द्रियों के विषयों के तरफ का झुकाव (लक्ष ) छोड़कर अपने मन के संकल्प विकल्प तोड़कर ज्ञानानन्दस्वरूप में एकाग्र होना-स्थिर होना वह परमात्मप्राप्ति का उपाय है।।१९८ ।।
(श्री समाधितंत्र, गाथा ३०, भावार्थ) * जो परमात्मा है वही मैं हूँ और जो मैं हूँ वह परमात्मा हैं; इसलिए मैं ही मेरे द्वारा उपासने योग्य हूँ, दूसरा कोई ( उपास्य ) नहीं है, ऐसी वस्तुस्थिति है।।१९९।।
(श्री समाधितंत्र , गाथा ३१, श्री पूज्यपादस्वामी) * मुझे मेरे आत्मा को पाँच इन्द्रियों के विषयों से हटाकर मेरे ही द्वारा अपने ही आत्मा द्वारा मैं मेरे में स्थित परमानन्द से निवृत्त ( रचित) ज्ञानस्वरूप आत्मा को प्राप्त हुआ हूँ।।२००।।
(श्री समाधितंत्र, गाथा ३२, श्री पूज्यपादस्वामी)
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*पर को जानते हुए ज्ञान भी नहीं है, सुख भी नहीं है।
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