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इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
अनुभवते हैं। और हमारी भावना है कि मुमुक्षु इस पुस्तक में दिए हुए आधारों का खूब गहराई से, अपूर्वता से मंथन करके निर्णय करे कि इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है। इस प्रकार इन्द्रियज्ञान में ज्ञान की भ्रांति को छोड़कर अतीन्द्रियज्ञानानंदमयी परमपदार्थ निज आत्मा के आश्रय से अतीन्द्रिय ज्ञानानंद को आस्वादें! यही अभ्यर्थना है! विनती है।
एक देखिये , जानिए, रमि रहिए एक ठौर। समल विमल न विचारिये, यही सिद्धि नहीं और।।
इन्द्र सेन जैन दिल्ली
'इन्द्रिय ज्ञान... ज्ञान नहीं है'। पू. संध्या बहन के इस मांगलिक अपूर्व संकलन की उपयोगिता पर पूज्य भाई श्री लालचंद भाई जी ने फरमाया कि इस संकलन रूपी कंठहार को जो अपने हृदय में अवधारण करेगा वह मुक्ति सुन्दरी को अवश्य वरेगा।
दिल्ली से हिन्दी में छपी १००० प्रति जब हिन्दी समाज को मिली तो इन्द्रिय ज्ञान... ज्ञान नहीं है यह विषय मुमुक्षुओं में बहुत ही चर्चित हुआ और इस प्रकाशन की मांग बढ़ती गई। इसे ध्यान में रखते हुए भिण्ड मुमुक्षु समाज ने पूज्य भाई श्री का आशीर्वाद प्राप्त कर दिल्ली मुमुक्षु भाइयों के सहयोग से २५०० प्रति प्रकाशन कराने का निर्णय लिया।
इस प्रकाशन में आचार्यों के कुछ और उल्लेख भी इस विषय में छपे हैं। आशा है कि अधिक से अधिक मुमुक्षु भाई इन्द्रिय ज्ञान की एकत्व बुद्धि छोड़कर निजात्म दर्शन को प्राप्त करेंगे।
श्री वीर निर्वाण सम्वत् २५१८ श्री कहान सम्वत् १२ अश्विन वदी द्वादशी ता. २३.१०.१९९२
वीर सेन जैन सरौफ
अध्यक्ष श्री दिगम्बर जैन मुमुक्षु मंडल
भिण्ड
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