SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates बहिन – जब नेमिनाथ चले गये फिर...राजुल की शादी .....? भाई - नहीं बहिन! राजुल भी तत्त्वप्रेमी राजकुमारी थी। उक्त घटना का निमित्त पाकर राजुल की आत्मा भी वैरागी हो गई। उनके पिताजी ने उन्हें बहुत समझाया पर वे फिर शादी करने को राजी नहीं हुईं। बहिन – यह तो बहुत बुरा हुआ। भाई - बुरा क्या हुआ! राग से विराग की ओर जाना क्या बुरा है ? बहिन – तो क्या फिर वे जीवन भर पिता के घर ही रहीं ? भाई - नहीं बहिन! बेटी जीवन भर पिता के घर नहीं रहती। उन्हें तो वैराग्य हो गया था न ? उन्होंने भोगों की असारता का अनुभव किया तथा ज्ञानानन्द स्वभावी राग-द्वेष के विकार से रहित आत्मा का अनुभव किया और अर्जिका का व्रत लेकर आत्मसाधना में लीन हो गईं। बहिन – ये नेमिनाथ कौन थे ? भाई - सौरीपुर के राजा समुद्रविजय के राजकुमार थे, श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे। इनकी माता का नाम शिवादेवी था। ये बाईसवें तीर्थंकर थे। अन्य तीर्थंकरों के समान इनका भी जन्म-कल्याणक बड़े ही उत्साह के साथ मनाया गया था। आत्मबल के साथ-साथ उनका शारीरिक बल भी अतुल्य था। उन्होंने राजकाज और विषयभोग को अपना कार्यक्षेत्र न बनाकर गिरनार की गुफाओं में शान्ति से आत्म-साधना करना ही अपना ध्येय बनाया। उन्होंने समस्त जगत् से अपने उपयोग को हटाकर एकमात्र Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008224
Book TitleBalbodh Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1995
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, & Religion
File Size573 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy