SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates हम धर्म के नाम पर फैलने वाली कुरीतियों, गृहित मिथ्यात्वादि और सामाजिक कुरीतियों को दूर करके धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में सही परम्परागों का निर्माण करें तथा परस्पर में धर्म-प्रेम रखें। हम सुख में प्रसन्न होकर फूल न जावें और दुःख को देख कर घबड़ा न जावें, दोनों ही दशाओं में धैर्य से काम लेकर समताभाव रखें तथा न्याय-मार्ग पर चलते हुए निरन्तर आत्म-बल में वृद्धि करते रहें। आठों ही कर्म दुःख के निमित्त हैं, कोई भी शुभाशुभ कर्म सुख का कारण नहीं है, अतः हम उनके नाश का उपाय करते रहें। आपका स्मरण सदा रखें जिससे सन्मार्ग में कोई विघ्न-बाधायें न आवें। हे भगवन् ! हम और कुछ भी नहीं चाहते हैं, हम तो मात्र यही चाहते हैं कि हमारी आत्मा पवित्र हो जावे और उसे मिथ्यात्वादि पापोंरुपी मैल कभी भी मलिन न करे तथा लौकिक विद्या की उन्नति के साथ ही हमारा धर्मज्ञान ( तत्त्वज्ञान) निरन्तर बढ़ता रहे। __ हम सभी भव्य जीव खड़े हुए हाथ जोड़कर आपको नमस्कार कर रहे हैं, हम तो आपके चरणों की शरण में आ गये हैं, हमारी भावना अवश्य ही पूर्ण हो। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008222
Book TitleBalbodh Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, & Religion
File Size628 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy