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देव-स्तुति का सारांश
यह स्तुति सच्चे देव की है। सच्चा देव उसे कहते हैं जो वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी हो। वीतरागी वह है जो राग-द्वेष से रहित हो और जो लोकालोक के समस्त पदार्थों को एक साथ जानता हो, वही सर्वज्ञ है। प्रात्महित का उपदेश देने वाला होने से वीतरागी, सर्वज्ञ, हितोपदेशी कहलाता है।
वीतराग भगवान से प्रार्थना करता हुअा भव्य जीव सबसे पहिले यही कहता है कि मैं मिथ्यात्व का नाश और सम्यग्ज्ञान को प्राप्त करूँ, क्योंकि मिथ्यात्व का नाश किए बिना धर्म का प्रारंभ ही नहीं होता है।
इसके बाद वह अपनी भावना व्यक्त करता हुआ कहता है कि मेरी प्रवृत्ति पाँचों पापों और कषायो में न जावे। मैं हिंसा न करूँ, झूठ न बोलूँ, चोरी न करूँ, कुशील सेवन न करूँ तथा लोभ के वशीभूत होकर परिग्रह संग्रह न करूँ, सदा सन्तोष धारण किए रहूँ और मेरा जीवन धर्म की सेवा में लगा रहे।
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