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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इतना कहकर मैं अपना स्थान ग्रहण करती हूँ। एक छात्र – (अपने स्थान पर ही खड़े होकर ) क्यों निर्मला बहिन ? रात के खाने में मात्र यही दोष है या कुछ और भी ? अध्यक्ष - ( अपने स्थान पर खड़े होकर ) आप अपने स्थान पर बैठ जाइये। क्या आपको सभा में बैठना भी नहीं आता? क्या आप यह भी नहीं जानते कि सभा में इस प्रकार बीच में नहीं बोलना चाहिए तथा यदि कोई अति आवश्यक बात भी हो तो अध्यक्ष की आज्ञा लेकर बोलना चाहिए? चूंकि प्रश्न आ ही गया है, अतः यदि निर्मला बहिन चाहें तो में उनसे अनुरोध करूँगा कि वे इसका उत्तर दें। निर्मला - ( खड़े होकर ) यह तो मैंने रात्रि भोजन से होने वाली प्रत्यक्ष सामने दिखने वाली हानि की ओर संकेत किया है, पर वास्तव में रात्रि भोजन में गृद्धता अधिक होने से राग की तीव्रता रहती है, अतः वह प्रात्म-साधना में भी बाधक है। अध्यक्ष __ - ( खड़े होकर) निर्मला बहिन ने बड़ी ही अच्छी बात बताई है। हम सब को यही निर्णय कर लेना चाहिए कि आज से रात में नहीं खायेंगे। बहुत से साथी बोलता चाहते हैं पर समय बहुत हो गया है, अत: आज उनसे क्षमा चाहते हैं। उनकी बात अगली मीटिंग में सुनेंगे। मैं अब भाषण तो क्या दूँ पर एक बात कह देना चाहता १८ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008222
Book TitleBalbodh Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, & Religion
File Size628 KB
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