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वह कहने लगा मेरा लड्डू छोटा है। दूसरे बच्चें तब तक लड्डू खा चुके थे, नहीं तो बदल दिया जाता। वह क्रोधी तो था ही, जोर-जोर से रोने लगा और गुस्से में आकर लड्डु भी फेंक दिया। जाकर एक कोने में लेट गया। दिन भर खाना भी नहीं खाया। सबने बहुत मनाया पर वह तो घमण्डी भी था न, मानता कैसे ? कोने में था एक बिच्छू और बिच्छू ने उसको काट खाया। उसे अपने किए की सजा मिल गई। दिन भर भूखा रहा, लड्डू भी गया और बिच्छू ने काट खाया सो अलग। क्रोधी, मानी, लोभी और हठी बालकों की यही दशा होती है। इसलिये हमें क्रोध, मान, लोभ एवं हठ नहीं करना चाहिये।
इतना कहकर मैं अपना स्थान ग्रहण करता हूँ।
(तालियों की गड़गड़ाहट)
अध्यक्ष - (खड़े होकर) शान्तिलाल ने बहुत शिक्षाप्रद कहानी सुनाई है।
अब मैं निर्मला बहिन से निवेदन करूँगा कि वे भी कोई शिक्षाप्रद
बात सुनावें। निर्मला - ( टेबल के पास खड़ी होकर)
आदरनीय अध्यक्ष महोदय एवं भाइयो और बहिनो! मैं आपके सामने भाषण देने नहीं आई हूँ। मैंने अखबार में कल एक बात पढ़ी थी, वही सुना देना चाहती हूँ।
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