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सुबोध – कुछ लोग छल-कपट खूब करते हैं ? प्रबोध – हाँ भाई! वह भी तो कषाय हैं, उसे ही तो माया कहते हैं। कहते हैं
मायाचारी मर कर पशु होते हैं। मायाचारी जीव के मन में कुछ और होता है, वह कहता कुछ और है और करता उससे भी अलग है। छल-कपट लोभी जीवों को बहुत होता है।
सुबोध - लोभ कषाय के बारे में भी कुछ बताइये ?
प्रबोध - यह बहुत खतरनाक कषाय है, इसे तो पाप का बाप कहा जाता है।
कोई चीज देखी कि यह मुझे मिल जाय, लोभी सदा यही सोचा करता है।
सुबोध – यह तो सब ठीक है कि कषायें बुरी चीज़ हैं, पर प्रश्न तो यह है कि
ये उत्पन्न क्यों होती हैं और मिटें कैसे ?
प्रबोध – मिथ्यात्व (उल्टी मान्यता) के कारण परपदार्थ या तो इष्ट
(अनुकूल) या अनिष्ट (प्रतिकूल) मालूम पड़ते हैं, मुख्यतया इसी कारण कषाय उत्पन्न होती है। जब तत्त्वज्ञान के अभ्यास से परपदार्थ न तो अनुकूल ही मालूम हो और न प्रतिकूल, तब मुख्यतया कषाय भी उत्पन्न न होगी।
सुबोध – अच्छा तो हमें तत्त्वज्ञान प्राप्त करने का अभ्यास करना चाहिए। उसी
से कषाय मिटेगी।
प्रबोध – हाँ! हाँ!! सच बात तो यही है।
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