________________
Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
पाठ चौथा
देवदर्शन
दिनेश – जिनेश! ओ जिनेश !! कहाँ जा रहे हो ? जिनेश – मन्दिरजी। दिनेश - क्यों? जिनेश – जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करने। दिनेश – अच्छा मैं भी चलता हूँ। जिनेश – तुम चलोगे तो चलो; पर पहिले यह चमड़े की पट्टी (बेल्ट) घर
खोलकर आओ। तुम्हें पता नहीं मन्दिर में चमड़े से बनी वस्तुएँ लेकर
नहीं जाना चाहिए। दिनेश –अच्छा भाई मैं अभी खोलकर आया।
(दोनों मन्दिर पहुंचते हैं) जिनेश – अरे भाई! कहाँ चले जा रहे हो ? जूते तो यहीं खोल दो। मन्दिर के
भीतर चप्पल, जूते पहिने हुए नहीं जाते। मालूम होता है पहिले तुम कभी मन्दिर आये ही नहीं, इसी कारण दर्शन करने की विधि भी
नहीं जानते। दिनेश – हाँ भाई, नहीं जानता, अब तुम बतायो।
११
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com