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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 卐卐 चारित्रपाहुड़ -- ३ -- दोहा वीतराग सर्वज्ञ जिन वंदू मन वच काय। चारित धर्म बखानिये साचो मोक्ष उपाय ।।१।। कुन्दकुन्दमुनिराजकृत चारितपाहुड़ ग्रंथ। प्राकृत गाथा बंधकी करूं वचनिका पंथ ।।२।। इसप्रकार मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करके अब चारित्रपाहुड़ प्राकृत गाथाबद्ध की देशभाषामय वचनिकाका हिन्दी अनुवाद लिखा जाता है। श्री कुन्दकुन्द आचार्य प्रथम ही मंगलके लिये इष्टदेव को नमस्कार करके चारित्रपाहुड़को कहने की प्रतिज्ञा करते हैं:-- सव्वण्हु सव्वदंसी णिम्मोहा वीयराय परमेट्ठी। वंदित्तु तिजगवंदा अरहंता भव्वजीवेहिं ।।१।। णाणं दंसण सम्मं चारित्तं सोहिकारणं तेसिं। मोक्खाराहणहेउं चारित्तं पाहुडं वोच्छे ।। २।। युग्मम्। सर्वज्ञान् सर्वदर्शिनः निर्मोहान् वीतरागान् परमेष्ठिनः। वंदित्वा त्रिजगद्वंदितान् अर्हतः भव्यजीवैः ।।१।। ज्ञानं दर्शनं सम्यक् चारित्रं शुद्धिकारणं तेषाम्। मोक्षाराधनहेतुं चारित्रं प्राभृतं वक्ष्ये ।।२।। युग्मम्। अर्थ:--आचार्य कहते हैं कि मैं अरहंत परमेष्ठीको नमस्कार करके चारित्रपाहड को कहूँगा। अरहंत परमेष्ठी कैसे हैं ? अरहंत ऐसे प्राकृत अक्षर की अपेक्षा तो ऐसा अर्थ है-अकार आदि अक्षरसे तो 'अरि' अर्थात् मोहकर्म, रकार अक्षरकी अपेक्षा रज अर्थात् ज्ञानावरण दर्शनावरण कर्म, उस ही रकार से रहस्य अर्थात् अंतराय कर्म-इसप्रकार से चार घातिया कर्मोंको हनना-घताना जिनके हुआ वे अरहन्त हैं। संस्कृतकी अपेक्षा 'अर्ह' ऐसा पूजा अर्थ में धातु है उससे 'अर्हन्' उससे ऐसा निष्पन्न हो तब पूजा योग्य हो उसको अर्हत् कहते हैं वह भव्य जीवोंसे पूज्य है। परमेष्ठी कहने से परम इष्ट अर्थात् Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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