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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [४३ सूत्रपाहुड] बारहवें अंगका दूसरा भेद ‘सूत्र' नामका है, इसमें मिथ्यादर्शन सम्बन्धी तीनसौ त्रेसठ कुवादोंका पूर्वपक्ष लेकर उनको जीव पदार्थ पर लगाने आदिका वर्णन है, इसके पद अट्ठाईस लाख हैं। बारहवें अंगका तीसरा भेद 'प्रथमानुयोग' है। इसमें प्रथम जीवके उपदेश योग्य तीर्थंकर आदि त्रेसठ शलाका पुरुषोंका वर्णन है, इसके पद पाँच हजार हैं। बारहवें अंगका चौथा भेद 'पूर्वगत' है, इसके चौदह भेद हैं---प्रथम ‘उत्पाद' नामका पूर्व है, इसमें जीव आदि वस्तुओंके उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य आदि अनेक धर्मों की अपेक्षा भेद वर्णन है, इसके पद एक करोड़ हैं। दूसरा ‘अग्रायणी' नामक पूर्व है, इसमें सातसौ सुनय, दुर्नयका और षद्रव्य, सप्ततत्त्व, नव पदार्थों का वर्णन है, इसके छियानवे लाख पद हैं। तीसरा ‘वीर्यानुवाद' नामका पूर्व है, इसमें छह द्रव्योंकी शक्तिरूप वीर्यका वर्णन है, इसके पद सत्तर लाख हैं। चौथा 'अस्तिनास्तिप्रवाद' नामक पूर्व है, इसमें जीवादिक वस्तुका स्वरूप द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी अपेक्षा अस्ति, पररूप, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी अपेक्षा नास्ति आदि अनेक धर्मों में विधि निषेध करके सप्तभंग द्वारा कथंचित् विरोध मेटनेरूप मुख्यगौण करके वर्णन है, इसके पद साठ लाख हैं। पाँचवाँ 'ज्ञानप्रवाद' नामका पूर्व है, इसमें ज्ञानके भेदोंका स्वरूप, संख्या, विषय, फल आदिका वर्णन है. इसमें पद एक कम करोड हैं। छठा 'सत्यप्रवाद' नामक पूर्व है, इसमें सत्य, असत्य आदि वचनोंकी अनेक प्रकारकी प्रवृत्तिका वर्णन है, इसके पद एक करोड़ छह हैं। सातवाँ 'आत्मप्रवाद' नामक पूर्व है, इसमें आत्मा (जीव) पदार्थके कर्ता, भोक्ता आदि अनेक धर्मोंका निश्चय-व्यवहारनयकी अपेक्षा वर्णन है, इसके पद छब्बीस करोड हैं। आठवाँ ‘कर्मप्रवाद' नामका पूर्व है, इसमें ज्ञानावरण आदि आठ कर्मोंके बंध, सत्व, उदय, उदीरणा आदिका तथा क्रियारूप कर्मोंका वर्णन है, इसके पद एक करोड़ अस्सी लाख हैं। नौंवाँ 'प्रत्याख्यान' नामका पूर्व है, इसमें पापके त्यागका अनेक प्रकारसे वर्णन है, इसके पद चौरासी लाख हैं। दसवाँ ‘विद्यानुवाद' नामका पूर्व है। इसमें सातसौ क्षुद्र विद्या और पांचसौ महाविद्याओंके स्वरूप, साधन, मंत्रादिक और सिद्ध हुए इनके फलका वर्णन है तथा अष्टांग निमित्तज्ञानका वर्णन है, इनके पद एक करोड़ दस लाख हैं। ग्यारहवाँ 'कल्याणवाद' नामक पूर्व है, इसमें तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदिके गर्भ आदि कल्याणकका उत्सव तथा उसके कारण षोडश भावनादिके, तपश्चरणादिक तथा चन्द्रमा, सूर्यादिकके गमन विशेष आदिका वर्णन है, इसके पद छब्बीस करोड़ हैं। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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