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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 听听听听听听听听听听听听听听听听听 सूत्रपाहुड -२当当当当当当当当当当当 卐卐ज 勇 दोहा वीर जिनेश्वरको नमूं गौतम गणधर लार । काल पंचमा आदिमें भए सूत्र करतार ।।१।। इसप्रकार मंगल करके श्री कुन्दकुन्द आचार्यकृत प्राकृत गाथा बद्ध सूत्रपाहुडकी देशभाषामय वचनिका लिखते हैं: प्रथम ही श्री कुन्दकुन्द आचार्य, सूत्रकी महिमागर्भित सूत्रका स्वरूप बताते हैं: अरहंतभासियत्थं गणहरदेवेहिं गंथियं सम्म। सुत्तत्थमग्गणत्थं सवणा साहंति परमत्थं ।।१।। अर्हम्दाषितार्थं गणधरदेवैः ग्रथितं सम्यक् । सूत्रार्थमार्गणार्थ श्रमणाः साध्यंति परमार्थम्।।१।। अर्थ:--जो गणधर देवोंने सम्यक् प्रकार पूर्वापरविरोध रहित गूंथा ( रचना की) वह सूत्र है। वह सूत्र कैसा है ?-सूत्रका जो कुछ अर्थ है उसको मार्गण अर्थात् ढूंढने-जानने का जिसमें प्रयोजन है और ऐसे ही सूत्रके द्वारा श्रमण (मुनि) परमार्थ अर्थात् उत्कृष्ट अर्थ प्रयोजन जो अविनाशी मोक्षको साधते हैं। यहाँ गाथामें 'सूत्र' इसप्रकार विशेष्य पद नहीं कहा तो भी विशेषणोंकी सामर्थ्यसे लिया है। भावार्थ:--जो अरहंत सर्वज्ञ द्वारा भाषित है तथा गणधरदेवोंने अक्षर पद वाक्यमयी गूंथा है और सूत्रके अर्थको जाननेका ही जिसमें अर्थ-प्रयोजन है ऐसे सूत्रसे मुनि परमार्थ जो मोक्ष असको साधते हैं। अन्य जो अक्षपाद, जैमिनि, कपिल, सुगत आदि छद्यस्थोंके द्वारा रचे हुए कल्पित सूत्र हैं, उनसे परमार्थकी सिद्धि नहीं है, इसप्रकार आशय जानना ।।१।। अहँतभाषित-अर्थमय, गणधरसुविरचित सूत्र छे; सूत्रार्थना शोधन वडे साधे श्रमण परमार्थने। १। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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