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शीलपाहुड
[३८३
शुनां गर्दभानां च गोपशुमहिलानां दृश्यते मोक्षः। ये शोधयंति चतुर्थं दृश्यतां जनैः सर्वैः ।। २९ ।।
अर्थ:--आचार्य कहते हैं कि--यह सब लोग देखो--श्वान, गर्दभ इनमें और गौ आदि पशु तथा स्त्री इनमें किसी का मोक्ष होना दिखता है ? वह तो दिखता नहीं है। मोक्ष तो चौथा पुरुषार्थ है, इसलिये जो चतुर्थ परुषार्थ को शोधते हैं उन्ही के मोक्ष का होना देखा जाता है।
भावार्थ:--धर्म अर्थ काम मोक्ष ये चार पुरुष के ही प्रयोजन कहे हैं यह प्रसिद्ध है, इसी से इनका नाम पुरुषार्थ है ऐसा प्रसिद्ध है। इनमें चौथा पुरुषार्थ मोक्ष है, उसको पुरुष ही शोधते हैं और पुरुष ही उसको हेरते हैं---उसकी सिद्ध करते है, अन्य अन्य श्वान गर्दभ बैल पशु स्त्री इनके मोक्ष का शोधना प्रसिद्ध नहीं है, जो हो तो मोक्ष का पुरुषार्थ ऐसा नाम क्यों हो? यहाँ आशय ऐसा है कि मोक्ष शील से होता है, और श्वान गर्दभ आदिक हैं वे तो अज्ञानी हैं कशील हैं, उनका स्वभाव प्रकृति ही ऐसी है कि पलट कर मोक्ष होने योग्य तथा उसके शोधने योग्य नहीं हैं, इसलिये पुरुष को मोक्ष का साधन शील को जानकर अंगीकार करना, सम्यग्दर्शनादिक है वह तो शील ही के परिवार पहिले कहे ही हैं इसप्रकार जानना चाहिये।। २९ ।।
आगे कहते हैं कि शील के बिना ज्ञान ही से मोक्ष नहीं है, इसका उदाहरण कहते हैं:
जइ विसयलोलएहिं णाणीहि हव्विज्ज साहिदो मोक्खो। तो सो सच्चइपुत्तो दसपुव्वीओविकिं गदो णरयं ।।३०।।
यदि विषयलोलैः ज्ञानिभिः भवेत् साधितः मोक्षः। वर्हि सः सात्यकिपुत्रः दशपूर्विक: किं गतः नरकं ।। ३०।।
अर्थ:--जो विषयों में लोल अर्थात् लोलुपी – आसक्त और ज्ञानसहित ऐसे ज्ञानियों ने मोक्ष साधा हो तो दश पूर्वको जाननेवाला रुद्र नरक को क्यों गया ?
भावार्थ:-- शुष्क कोरे ज्ञान ही से मोक्ष किसीने साधा कहें तो दश पूर्वका पाठी रुद्र नरक क्यों गया ? इसलिये शील के बिना केवल ज्ञान ही मोक्ष नहीं है रुद्र कुशील सेवन करनेवाला हुआ, मुनिपद से भ्रष्ट होकर कुशील सेवन किया इसलिये नरक में गया, यस कथा पुराणों में प्रसिद्ध है।। ३०।।
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जो मोक्ष साधित होत विषयविलुब्ध ज्ञानधरो वडे, दशपूर्वधर पण सात्यकिसुत केम पामत नरक ने ? ३० ।
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