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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates मोक्षपाहुड] [३३५ इसमें हिंसाकी अधिकता है, मुनिके स्नान ऐसा है--कमंडलु में प्रासुक जल रहता है उससे मंत्र पढ़कर मस्तकपर धारामात्र देते हैं और उस दिन उपवास करते हैं तो ऐसा स्नान तो नाममात्र स्नान है, यहाँ मंत्र और तपस्नान प्रधान है, जल स्नान प्रधान नहीं है, इस प्रकार जानना।। ९८।। आगे कहते हैं कि जो आत्मस्वभाव से विपरीत बाह्य क्रियाकर्म है वह क्या करे ? मोक्ष मार्ग में तो कुछ भी कार्य नहीं करते हैं:--- किं काहिदि बहिकम्मं किं काहिदि बहुविहं च खवणं तु। किं काहिदि आदावं आदसहावस्स विवरीदो।। ९९ ।। किं करिष्यति बहिः कर्म किं करिष्यति बहुविधं च क्षमणं तु। किं करिष्यति आताप: आत्मस्वभावात् विपरीतः।। ९९।। अर्थ:--आत्मस्वभाव के विपरीत, प्रतिकूल बाह्यकर्म को क्रियाकाड़ वह क्या करगा? कुछ मोक्ष का कार्य तो किंचित्मात्र भी नहीं करेगा, बहुत अनेक प्रकार क्षमण अर्थात् उपवासादि बाह्य तप भी क्या करेगा? कुछ भी नहीं करेगा, आतापनयोग आदि कायक्लेश क्या करगा ? कुछ भी नहीं करगा। भावार्थ:--बाह्य क्रिया कर्म शरीराश्रित है और शरीर जड़ है, आत्मा चेतन है, जड़ की क्रिया तो चेतन को कुछ फल करती नहीं है, जैसा चेतनाका भाव जितना क्रिया में मिलता है उसका फल चेतनाको लगता है। चेतनाका अशुभ उपयोग मिले तब अशुभकर्म बँधे और शुभोपयोग मिले तब शुभ कर्म बँधता है और जब शुभ-अशुभ दोनों से रहित उपयोग होता है तब कर्म नहीं बँधता है, पहिले बँधे हुए कर्मों की निर्जरा करके मोक्ष करता है। इसप्रकार चेतना उपयोग के अनुसार फलती है, इसलिये ऐसे कहा है कि बाह्य क्रियाकर्मसे तो कुछ होता नहीं है, शुद्ध उपयोग होने पर मोक्ष होता है। इसलिये दर्शन-ज्ञान उपयोगोंका विकार मेट कर शुद्ध ज्ञानचेतनाका अभ्यास करना मोक्ष का उपाय है।। ९९ ।। आगे इसी अर्थको फिर विशेषरूप से कहते हैं:--- बहिरंग कर्मो शुं करे? उपवास बहुविध शुं करे? रे! शुं करे आतापना? आत्मस्वभावविरुद्ध जे। ९९ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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