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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ३३०] । अष्टपाहुड यथाजातरूपरूपं सुसंयतं सर्वसंगपरित्यक्त्वम्। लिंगं न परापेक्षं यः मन्यते तस्य सम्यक्त्वम्।। ९१ ।। अर्थ:--मोक्षमार्ग का लिंग भेष ऐसा है कि यथाजातरूप तो जिसका रूप है, जिसमें बाह्य परिग्रह वस्त्रादिक किंचित्मात्र भी नहीं है, सुसंयत अर्थात् सम्यक्प्रकार इन्द्रियों का निग्रह और जीवोंकी दया जिसमें पाई जाती है ऐसा संयम है, सर्व संग अर्थात् सबही परिग्रह तथा सब लौकिक जनोंकी संगति से रहित है और जिसमें परकी अपेक्षा कुछ नहीं है, मोक्षके प्रयोजन सिवाय अन्य प्रयोजनकी अपेक्षा नहीं है। ऐसा मोक्षमार्ग का लिंग माने-श्रद्धान करे उस जीवके सम्यक्त्व होता है। भावार्थ:--मोक्षमार्ग में ऐसा ही लिगं है, अन्य अनेक भेष हैं वे मोक्षमार्ग में नहीं हैं, ऐसा श्रद्धान करे उनके सम्यक्त्व होता है। यहाँ परापेक्ष नहीं है---ऐसा कहने से बताया है कि---ऐसा निग्रंथ रूप भी जो किसी अन्य आशय से धारण करे तो वह भेष मोक्षमार्ग नहीं है, केवल मोक्ष ही की अपेक्षा जिसमें हो ऐसा हो उसको माने वह सम्यग्दृष्टि है ऐसा जानना।। ९१।। आगे मिथ्यादृष्टि के चिन्ह कहते हैं:--- कुच्छियदेवं धम्मं कुच्छियलिंगं च बंदए जो दु। लज्जाभयगारवदो मिच्छादिट्ठी हवे सो हु।।९२।। कुत्सितदेवं धर्मं कुत्सितलिंगं च वन्दते यः तु। लज्जाभयगारवतः मिथ्यादृष्टि: भवेत् सः स्फुटम्।। ९२।। अर्थ:--जो क्षुधादिक और रागद्वेषादि दोषोंसे दूषित हो वह कुत्सित देव है, जो हिंसादि दोषोंसे सहित हो वह कुत्सित धर्म है, जो परिग्रहादि सहित हो वह कुत्सित लिंग है। जो इनकी वंदना करता है, पूजा करता है वह तो प्रगट मिथ्यादृष्टि है। यहाँ अब विशेष कहते हैं कि जो इनको भले-हित करने वाले मानकर वंदना करता है, पूजा करता है वह तो प्रगट मिथ्यादृष्टि है। परन्तु जो लज्जा, भय, गारण इन कारणोंसे भी वंदना करता है, पूजा करता है वह भी प्रगट मिथ्यादृष्टि है। लज्जा तो ऐसे कि--लोग इनकी वंदना करते हैं, हम नहीं पूजेंगे तो लोग हमको क्या कहेंगे? हमारी इस लोक में प्रतिष्ठा चली जायेगी, इसप्रकार लज्जा से वंदना व पूजा करे। भय ऐसे कि--- --- ------------------ जे देव कुत्सित, धर्म कुत्सित, लिंग कुत्सित वंदता, भय, शरम वा गारव थकी, ते जीव छे मिथ्यात्वमां। ९२ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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