________________
Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
मोक्षपाहुड]
[२७५
मलरहिओ कलचत्तो अणिंदिओ केवलो विसुद्धप्पा। परमेट्ठी परमजिणो सिवंकरो सासओ सिद्धो।।६।।
मलरहितः कलत्यक्त: अनिंद्रिय केवल: विशुद्धात्मा। परमेष्ठी परमजिनः शिवंकरः शाश्वत: सिद्धः।।६।।
अर्थ:--परमात्मा ऐसा है – मलरहित है - द्रव्यकर्म भावकर्मरूप मलसे रहित है, कलत्यक्त ( – शरीर रहित) है अनिद्रिय ( - इन्द्रिय रहित) है, अथवा अनिंदित अर्थात् किसी प्रकार निंदायुक्त नहीं है सब प्रकारसे प्रशंसा योग्य है, केवल (- केवलज्ञानमयी) है, विशुद्धात्मा - जिसकी आत्माका स्वरूप विशेषरूपसे शुद्ध है, ज्ञानमें ज्ञेयोंके आकार झलकते हैं तो भी उनरूप नहीं होता है, और न उनसे रागद्वेष है, परमेष्ठी है - परमपद में स्थित है, परम जिन है -सब कर्मोको जीत लिये हैं, शिवंकर है - भव्यजीवोंको परम मंगल तथा मोक्षको करता है, शाश्वता (- अविनाशी) है, सिद्ध है---अपने स्वरूपकी सिद्धि करके निर्वाणपदको प्राप्त हुआ है।
भावार्थ:--ऐसा परमात्मा है, जो इसप्रकारके परमात्माका ध्यान करता है वह ऐसा ही हो जाता है।। ६।।
आगे भी यही उपदेश करते हैं:---
आरुहवि अन्तरप्पा बहिरप्पा छंडिउण तिविहेण। झाइज्जइ परमप्पा उवइटुं जिणवरिंदेहिं।।७।।
आरुह्य अंतरात्मानं बहिरात्मानं त्यक्त्वा त्रिविधेन। ध्यायते परमात्मा उपदिष्टं जिनवरैन्द्रैः।।७।।
अर्थ:--बहिरात्मपन को मन वचन काय से छोड़कर अन्तरात्माका आश्रय लेकर परमात्माका ध्यान करो, यह जिनवरेन्द्र तीर्थंकर परमदेव ने उपदेश दिया है।
-------------------------- --
-------------
ते छे विशुद्धात्मा, अनिन्द्रिय, मळरहित तनमुक्त छे, परमेष्ठी, केवळ, परमजिन, शाश्वत, शिवंकर सिद्ध छ। ६।
थई अंतरात्मारूढ, बहिरात्मा तजीने त्रणविधे, ध्यातव्य छे परमातमा-जिनवरवृषभ-उपदेश छ। ७।
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com