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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २१०] अष्टपाहुड कि----हे भव्यजीवों! तुम उस आत्मा को प्रयत्नपूर्वक सब प्रकार के उद्यम करके यथार्थ जानो, उस आत्मा का श्रद्धान करो, प्रतीति करो, आचरण करो। मन-वचन-काय से ऐसे करो जिससे मोक्ष पावो। भावार्थ:--जिसको जानने और श्रद्धान करने से मोक्ष हो उसीको जानना और श्रद्धान करना मोक्ष प्राप्ति कराता है, इसलिये आत्माको जानने का कार्य सब प्रकारके उद्यम पूर्वक करना चाहिये, इसी से मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिये भव्यजीवों को यही उपदेश है।। ८७।। आगे कहते हैं कि बाह्य---हिंसादिक क्रिया के बिना ही अशुद्ध भावसे तंदुल मत्स्यतुल्य जीव भी सातवें नरक को गया, तब अन्य बड़े जीवों की क्या कथा ? मच्छो वि सालिसित्थो असुद्धभावो गओ महाणरयं। इय गाउं अप्पाणं भावह जिणभावणं णिच्च।। ८८।। मत्स्यः अपि शालिसिक्थः अशुद्धभावः गत: महानरकम्। इति ज्ञात्वा आत्मानं भावय जिनभावनां नित्यम्।।८८।। अर्थ:--हे भव्यजीव! तू देख, शालसिक्थ (तन्दुल नामका मत्स्य) वह भी अशुद्ध भावस्वरूप होता हुआ महानरक (सातवें नरक) में गया, इसलिये तुझे उपदेश देते हैं कि अपनी आत्मा को जानने के लिये निरंतर जिनभावना कर। भावार्थ:--अशुद्धभाव के महात्म्य से तन्दुल मत्स्य जैसा अल्पजीव भी सातवें नरक को गया, तो अन्य बड़े जीव क्यों न नरक जावें? इसलिये भाव शुद्ध करने का उपदेश है। भाव शुद्ध होने पर अपने और दूसरे के स्वरूप का जानना होता है। अपने और दूसरे के स्वरूप का ज्ञान जिनदेव की आज्ञा की भावना निरन्तर भाने से होता है, इसलिये जिनदेव की आज्ञा की भावना निरन्तर करना योग्य है। तन्दुल मत्स्य की कथा ऐसे है----काकन्दीपुरी का राजा सूरसेन था वह मांसभक्षीहो गया। अत्यन्त लोलुपी, मांस भक्षणका अभिप्राय रखता था। उसके 'पितृप्रिय' नामका रसोईदार था। वह अनेक जीवों का मांस निरन्तर भक्षण करता था। उसको सर्प डस गया तो मरकर स्वयंभूरमण समुद्र में महामत्स्य हो गया। अविशुद्ध भावे मत्स्य तंदुल पण गयो महा नरकमां, तेथी निजात्मा जाणी नित्य तुं भाव रे! जिनभावना। ८८। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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