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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १९२] । अष्टपाहुड एक: मे शाश्वतः आत्मा ज्ञानदर्शनलक्षणः। शेषाः मे बाह्याः भावाः सर्वे संयोगलक्षणाः।। ५९ ।। अर्थ:--भावलिंगी मुनि विचारता है कि---ज्ञान, दर्शन लक्षणरूप और शाश्वत् अर्थात् नित्य ऐसा आत्मा है वही एक मेरा है। शेष भाव हैं वे मुझसे बाह्य हैं, वे सब ही संयोगस्वरूप हैं, परद्रव्य हैं। भावार्थ:--ज्ञानदर्शनस्वरूप नित्य एक आत्मा है वह तो मेरा है, एक स्वरूप है और अन्य परद्रव्य हैं वे मुझसे बाह्य हैं, सब संयोगस्वरूप हैं, भिन्न हैं। यह भावना भावलिंगी मुनि के हैं।। ५९।। आगे कहते हैं कि जो मोक्ष चाहे वह इसप्रकार आत्माकी भावना करे:--- भावेह भवसुद्धं अप्पा सुविशुद्धणिम्मलं चेव। लहु चउगइ चइउणं जइ इच्छह सासयं सुक्खं ।।६।। भावय भावशुद्धं आत्मानं सुविशुद्धनिर्मलं चैव। लघु चतुर्गति च्युत्वा यदि इच्छसि शाश्वतं सौख्यम्।।६०।। अर्थ:--हे मुनिजनो! यदि चार गतिरूप संसारसे छूटकर शीघ्र शाश्वत सुखरूप मोक्ष तुम चाहो तो भावसे शुद्ध जैसे हो वैसे अतिशय विशुद्ध निर्मल आत्माको भावो। भावार्थ:--यदि संसार से निवृत्त होकर मोक्ष चाहो तो द्रव्यकर्म , भावकर्म और नोकर्मसे रहित शुद्ध आत्मा को भावो, इसप्रकार उपदेश है।। ६०।। आगे कहते हैं कि जो आत्माको भावे वह इसके स्वभावको जानकर भावे, वही मोक्ष पाता है:--- जो जीवो भावंतो जीव सहावं सुभावसंजुत्तो। सो जरमरणविणासं कुणइ फुडं लहइ णिव्वाणं।। ६१।। तुं शुद्ध भावे भाव रे! सुविशुद्ध निर्मळ आत्मने, जो शीघ्र चउगतिमुक्त थई इच्छे सुशाश्वत सौख्यने। ६०। जे जीव जीवस्वभावने भावे, सुभावे परिणमे, जर-मरणनो करी नाश ते निश्चय लहे निर्वाणने। ६१ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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