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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १८४] । अष्टपाहुड दंडयणयरं सयलं डहिओ अभंतरेण दोसेण। जिणलिंगेण वि बाहू पडिओ सो रउरवे णरए।। ४९।। दण्डक नगरं सकलं दग्ध्वा अभ्यन्तरेण दोषेण। जिनलिंगेनापि बाहुः पतितः सः रौरवे नरके।। ४९।। अर्थ:--देखो, बाहु नामक मुनि बाह्य जिनलिंग सहित था तो भी अभ्यन्तर के दोषसे समस्त दंडक नामक नगर को दग्ध कर किया और सप्तम पृथ्वीके रौरव नामक बिल में गिरा। भावार्थ:--द्रव्यलिंग धारण कर कुछ तप करे, उससे कुछ सामर्थ्य बढ़े, तब कुछ कारण पाकर क्रोधसे अपना और दूसरेका उपद्रव करने का कारण बनावे, इसलिये द्रव्यलिंग भावसहित धारण करना श्रेष्ठ है और केवल द्रव्यलिंग तो उपद्रव का कारण होता है। इसका उदाहरण बाहु मुनि का बताया। उसकी कथा ऐसे है---- दक्षिण दिशामें कुम्भकारकटक नगरमें दण्डक नामका राजा था। उसके बालक नामका मंत्री था। वहाँ अभिनन्दन आदि पाँचसौ मुनि आये, उनमें एक खंडक नामके मुनि थे। उन्होंने बालक नामके मंत्री को वादमें जीत लिया, तब मंत्रीने क्रोध करके एक भाँडको मुनिका रूप कराकर राजाकी रानी सुव्रताके साथ क्रीड़ा करते हुए राजा को दिखा दिया और कहा कि देखो! राजाके ऐसी भक्ति है जो अपनी स्त्री भी दिगम्बरको क्रीड़ा करनेके लिये दे दी है। तब राजाने दिगम्बरों पर क्रोध करके पाँचसौ मुनियोंको घानी में पिलवाया। वे मुनि उपसर्ग सहकर परमसमाधिसे सिद्धि को प्राप्त हुए। फिर उस नगर में बाहु नामके एक मुनि आये। उनको लोगोंने मना किया कि यहाँ का राजा दुष्ट है इसलिये आप नगर में प्रवेश मत करो। पहिले पाँचसौ मुनियोंको घानी में पेल दिया है, वह आपका भी वही हाल करेगा। तब लोगोंके वचनों से बाहु मुनिको क्रोध उत्पन्न हुआ , अशुभ तैजससमुद्घातसे राजाको मंत्री सहित और सब नगर को भस्म कर दिया। राजा और मंत्री सातवें नरक रौरव नामक बिलमें गिरे, वह बाहु मुनि भी मरकर रौरव बिल में गिरे। इसप्रकार द्रव्यलिंग में भावके दोष से उपद्रव होते हैं, इसलिये भावलिंग का प्रधान उपदेश है।। ४९।। दंडकनगर करी दग्ध सघळु दोष अभ्यंतर वडे, जिनलिंगथी पण बाहु ओ उपज्या नरक रौरव विषे। ४९ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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