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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates भावपाहुड [१७९ देहादिवत्तसंगो माणकसाएण कलुसिओ धीर। अत्तावणेण जादो बाहुबली कित्तियं कालं।। ४४ ।। देहादित्यक्तसंगः मानकषायेन कलुषितः धीर। आतापनेन जात: बाहुबली कियन्तं कालम्।। ४४।। अर्थ:--देखो, बाहुबली श्री ऋषभदेवका पुत्र देहादिक परिग्रहको छोड़कर निग्रंथ मुनि बन गया, तो भी मानकषाय से कलुष कुछ समय तक आतापन योग धारणकर स्थित हो गया, फिर भी सिद्धि नहीं पाई। भावार्थ:--बाहुबली से भरतचक्रवर्ती ने विरोध कर युद्ध आरम्भ किया, भरत का अपमान हुआ। उसके बाद बाहुबली विरक्त होकर निग्रंथ मुनि बन गये, परन्तु कुछ मान-कषाय की कलुषता रही कि भरत की भूमि पर मैं केसे रहूँ ? तब कायोत्सर्ग योगसे एक वर्ष तक खड़े रहे परन्तु केवलज्ञान नहीं पाया। पीछे कलुषता मिटी तब केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। इसलिये कहते हैं कि ऐसे महान पुरुष बड़ी शक्ति के धारकके भी भाव शुद्धि के बिना सिद्धि नहीं पाई तब अन्य की क्या बात ? इसलिये भावोंको शुद्ध करना चाहिये, यह उपदेश है।। ४४।। आगे मधुपिंगल मुनि का उदाहरण देते हैं:--- महुपिंगो णाम मुणी देहाहारादिचत्तवावारो। सवणत्तणं ण पत्तो णियाणमित्तेण भवियणुय।। ४५।। १ -'कित्तियं' पाठान्तर 'कितियं' देहादि संग तज्यो अहो पण मलिन मानकषायथी आतापना करता रह्या बाहुबल मुनि क्यां लगी ? ४४। तन-भोजनादि प्रवृत्तिना तजनार मुनि मधुपिंगले , हे भव्यनूत! निदानथी ज लडं नहीं श्रमणत्वने। ४५। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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