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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १७०] [ अष्टपाहुड इनका स्वरूप इसप्रकार है - आयुकर्मका उदय समय-समयमें घटता है वह समयसमय मरण है, यह आवीचिकामरण है।। १।। वर्तमान पर्यायका अभाव तद्भवमरण है।। २।। जैसा मरण वर्तमान पर्यायका हो वैसा ही अगली पर्यायका होगा वह अवधिमरण है। इसके दो भेद हैं---जैसा प्रकृति, स्थिति, अनुभाग वर्तमानका उदय आया वैसा ही अगली का उदय आवे वह [१] सर्वावधिमरण है और एकदेश बंध-उदय हो तो [२] देशावधिमरण कहलाता है।। ३।। वर्तमान पर्याय का स्थिति आदि जैसा उदय था वैसा अगलीका सर्वतो वा देशतो बंधउदय न हो वह आद्यन्तमरण है।। ४।। पाँचवाँ बालमरण है, वह पाँच प्रकार का है---१ अव्यक्तबाल, २ व्यवहारबाल, ३ ज्ञानबाल, ४ दर्शनबाल, ५ चारित्रबाल। जो धर्म, अर्थ, काम इन कामोंको न जाने, जिसका शरीर इनके आचरण के लिये समर्थ न हो वह 'अव्यक्तबाल' है। जो लोकके और शास्त्रके व्यवहार को न जाने तथा बालक अवस्था हो वह 'व्यवहारबाल' है। वस्तुके यथार्थज्ञान रहित 'ज्ञानबाल' है। तत्त्वश्रद्धानरहित मिथ्यादृष्टि 'दर्शनबाल' है। चारित्ररहित प्राणी ‘चारित्रबाल' है। इनका मरना सो बाल मरण है। यहाँ प्रधानरूपसे दर्शनबाल का ही ग्रहण है क्योंकि सम्यक्दृष्टि को अन्यबालपना होते हुए भी दर्शनपंडितता के सद्भावसे पंडितमरण में ही गिनते हैं। दर्शनबालका मरण संक्षेपमें दो प्रकारका कहा है--इच्छाप्रवृत्त और अनिच्छाप्रवृत्त। अग्निसे, धूमसे, शस्त्रसे, विषसे, जलसे, पर्वतके किनारेपर से गिर ने से, अति शीत-उष्णकी बाधा से, बंधनसे, क्षुधा-तृषाके रोकनेसे, जीभ उखाड़ने से और विरूद्ध आहार करने से बाल (अज्ञानी) इच्छापूर्वक मरे सो ‘इच्छाप्रवृत्त' है तथा जीने का इच्छुक हो और मर जावे सो 'अनिच्छाप्रवृत्त' है।। ५।। पंडितमरण चार प्रकार का है---१ व्यवहार पंडित, २ सम्यक्त्वपंडित, ३ ज्ञानपंडित, ४ चारित्रपंडित। लोकशास्त्र के व्यवहार में प्रवीण हो वह 'व्यवहार पंडित' है। सम्यक्त्व सहित हो 'सम्यक्त्वपंडित' है। सम्यग्ज्ञान सहित हो 'ज्ञानपंडित' है। सम्यकचारित्र सहित हो 'चारित्रपंडित' है। यहाँ दर्शन-ज्ञान-चारित्र सहित पंडितका ग्रहण है, क्योंकि व्यवहार-पंडित मिथ्यादष्टि बालमरण में आ गया।। ६ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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